मानसिक रुप से कमजोर भतीजी की अस्मिता से किया खिलवाड़, चाचा को मिला 17 साल का कारावास

मानसिक रुप से कमजोर भतीजी के साथ जबरिया शारीरिक संबंध बनाने के मामले में अदालत द्वारा आरोपी को विभिन्न धाराओं के तहत कुल 17 वर्ष के कारावास से दंडि़त किया गया है। आरोपी ने पीडि़त युवती को उस समय अपना शिकार बनाया जब वह घर में अकेली थी। इस मामले में फास्ट टे्रक कोर्ट में विचारण किया गया था। न्यायाधीश मधु तिवारी ने आरोपी को घर में जबरिया प्रवेश कर युवती के साथ उसकी सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाने का दोषी करार दिया है। अभियोजन पक्ष की ओर से अति. लोक अभियोजक पुष्पारानी पाढ़ी ने पैरवी की थी।

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। मामला बोरी थाना क्षेत्र का है। घटना दिनांक 15 मार्च 2018 की दोपहर पीडि़ता घर में अकेली थी। उसके माता, पिता व भाई, बहन काम पर खेत गए थे। मानसिक रुप से कमजोर होने के कारण पीडि़ता घर में ही रहती थी। दोपहर लगभग 12.30 बजे पीडि़ता का पडौसी टोमन दास सायतोड़े, जो रिश्ते में चाचा लगता है, घर आया और सब्जी की मांग की। सब्जी दिए जाने के दौरान टोमन दास ने पीडि़ता को पकड़ लिया और घर के अंदर ले जाकर उसके साथ जबरिया शारीरिक संबंध बनाए। शाम को पीडि़ता की मां खेत से वापस आई तो पीडि़ता इस घटना की जानकारी उसे दी। जिसके बाद मामले की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई गई। शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर प्रकरण को विचारण के लिए अदालत के समक्ष पेश किया गया था।
प्रकरण पर फास्ट टे्रक कोर्ट में विचारण किया गया। विचारण पश्चात न्यायाधीश मधु तिवारी ने आरोपी को घर में जबरिया प्रवेश कर युवती के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाए जाने का दोषी पाया। मामले में आरोपी टोमनदास सायतोड़े (25 वर्ष) के दफा 376 (2)(ठ)के तहत 10 वर्ष के कारावास तथा 2 हजार रु. के अर्थदंड तथा दफा 450 के तहत 7 वर्ष के कारावास तथा 2 हजार रु. के अर्थदंड से दंडि़त किए जाने का फैसला सुनाया है। सभी सजाएं साथ साथ चलेंगी।
अदालत ने कहा बलात्कारी स्त्री की आत्मा को करता है अपमानित
जबरिया शारीरिक संबंध बनाए जाने के इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा है कि बलात्संग पीडि़ता के शरीर एवं मन पर गोपनीय प्रहार है। हत्यारा तो शारीरिक संरचना को विनिष्ट करता है, जबकि बलात्कारी असहाय स्त्री की आत्मा को अपमानित व दूषित करता है। बलात्संग एक स्त्री को पशु बना देता है, क्योकि वह उसके जीवन के सार भाग को ही अस्थिर कर देता है। बलात्संग संपूर्ण समाज के विरुद्ध है और यह पीडि़ता के मानव अधिकारों का उल्लघंन करता है। यह उसके सम्मान और गरिमा दोनों को व्यापक ठेस पहुंचाता है।

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