15,000 पेड़ों की कटाई और ग्रामीणों का संघर्ष: हसदेव जंगल में कोयला खनन को मिली ‘कानूनी’ हरी झंडी!

रायपुर/हसदेव (छत्तीसगढ़): हसदेव अरण्य के जंगलों में 15,000 से अधिक पेड़ों की अवैध कटाई और कोयला खनन के खिलाफ चल रहे विवाद के बीच राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की अहम टिप्पणी सामने आई है। कोरबा और सरगुजा जिलों में स्थित पेड़ों की कटाई को लेकर दायर की गई मूल याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायिक सदस्य श्री श्यो कुमार सिंह और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. विजय कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि परियोजना प्रायोजकों ने आवश्यक अनुमतियाँ ली थीं, और इस पर कोई कानूनी उल्लंघन नहीं पाया गया

ग्रामीणों के विरोध को मिली अनदेखी

हालांकि, स्थानीय ग्रामीणों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था और आरोप लगाया था कि पेड़ों की अवैध कटाई पुलिस की निगरानी में जारी है। लोगों का कहना है कि यह पूरा मामला पर्यावरण के खिलाफ है, लेकिन राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (Rajasthan Rajya Vidyut Utpadan Nigam Limited), जिसे यह कोयला खनन परियोजना आवंटित की गई, ने सरकार और अदाणी समूह के साथ मिलकर कार्यवाही को आगे बढ़ाया।

समिति की रिपोर्ट और पेड़ों की कटाई का आंकड़ा

NGT द्वारा गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कोल ब्लॉक के पहले और दूसरे चरण में साल 2022-23 से 2024 तक कुल 15,307 पेड़ों की कटाई की गई। यह कार्य पारसा और केते बासन गांव के क्षेत्र में 1898.328 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग के लिए किया गया, जिसमें 1654.109 हेक्टेयर राजस्व वन भूमि और 244.219 हेक्टेयर अधिसूचित वन भूमि शामिल है।

सरकार ने पहले ही दी थी अनुमति

महत्वपूर्ण बात यह है कि 02 फरवरी 2020 को सरकार द्वारा गैर-वन उपयोग की अनुमति दी गई थी, जिसे आधार बनाकर NGT ने कहा कि इस परियोजना में किसी प्रकार का उल्लंघन नहीं हुआ है

हरियाली के बदले वनीकरण की शर्त

हालांकि, प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्देश दिया कि परियोजना प्रायोजकों द्वारा आवश्यक वृक्षारोपण किया जाए

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