रायपुर (छत्तीसगढ़)। पशुधन विकास विभाग द्वारा सुकमा जिले के पशुओं में खुरपका और मुंहपका (खुरहा-चपका) रोग से बचाव के लिए 15 फरवरी से सघन टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इस टीकाकरण अभियान के लिए जिले में 23 दल बनाए गए हैं, जो घर-घर जाकर पशुओं का टीकाकरण कर रहे हैं। टीकाकृत पशुओं को ईयर टैगिंग भी लगाया जा रहा है। पशुओं में खुरपका-मुंहपका रोग को नियंत्रित करने के साथ ही 2030 तक इस रोग को भारत से खत्म करने के लिए राष्ट्रीय खुरपका-मुंहपका रोग नियंत्रण कार्यक्रम पशुपालन, डेयरी और फिशरीज मंत्रालय भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। खुरपका-मुंहपका रोग टीकाकरण अभियान के तहत् पशुओं का टीकाकरण जिले में तीन चरणों में किया जाएगा। पहले चरण में नेशनल एग्रीकल्चर इनोवेशन प्रोजेक्ट अन्तर्गत चयनित 300 ग्रामों में, द्वितीय चरण में प्रथम चरण के गौठान ग्रामों में और तृतीय चरण में शेष ग्रामों में टीकारण किया जाएगा।
टीकाकरण कार्यक्रम के प्रभाव का मूल्याकंन करने के लिए टीकाकरण से पूर्व टीकाकरण के 21-30 दिनों के पश्चात मवेशियों के सिरम के नमूनों को परीक्षण के लिए बेंगलोर भेजा जाएगा। इस टीकाकरण अभियान के लिए डॉ आरसी अल्वा और एनके कोर्राम (एव्हीएफओ) को सुकमा जिले का नोडल अधिकारी बनाया गया है। साथ ही तीनो विकासखण्डों में ब्लॉक नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया है। टीकाकृत पशुओं को ईयर टैंगिंग कर पशुओं की ऑनलाईन एन्ट्री इनहॉफ पोर्टल में भी किया जाएगा।
उप संचालक पशु पालन विभाग डॉ एस जहीरूद्दीन ने बताया कि टीकाकरण अभियान की शुरूआत विकासखण्ड सुकमा के ग्राम रामपुरम गीदमनाला गौठान, छिन्दगढ़ विकासखण्ड के ग्राम पाकेला पेदापारा गौठान एवं ग्राम सौतनार गौठान तथा कोन्टा विकासखण्ड के ग्राम डोंडरा गौठान में किया गया। साथ ही पशुपालको को पशुओं के लिए निशुल्क मिनरल मिक्सर का वितरण किया गया तथा पशुओं को ईयर टैंग लगाकर टीका लगाया गया। उन्होंने खुरपका मुंहपका रोग से बचाव के लिए अपने पशुओं को समय पर टीका जरूर लगाने की अपील पशुपालकों से की।
डॉ. एस जहीरूद्दीन ने बताया कि खुरपका और मुंहपका रोग पशुओं में तेजी से फैलता है। यह रोग बीमार पशु के लार, मूत्र, गोबर, वीर्य, दूध के संपर्क में आकर फैलता है तथा धीरे-धीरे यह एक झुंड या पुरे गांव के अधिकतर पशुओं में फैलने लगता है। खासकर दूधारू गाय एवं भैस में यह बीमारी अधिक नुकसानदायक होती है। जिले में खेती किसानी तथा दूध व्यवसाय के लिए पशुपालक गौवंशीय भैंसवंशीय पशुओं का पालन करते है। विषाणु जनित घातक रोग खुरपका-मुंहपका के सम्पर्क में आने से दूधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही बीमारियों से खेती किसानी में काम आने वाले पशुओं की कार्य क्षमता को भी प्रभावित करता है। इन बीमारियों की चपेट में आने से पशुओं की मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी होती है जिससे किसानों का आर्थिक नुकसान होता है।