कर्नाटक में हाल ही में जारी सामाजिक एवं शैक्षणिक सर्वेक्षण, जिसे आमतौर पर जाति जनगणना कहा जा रहा है, को लेकर ब्राह्मण समुदाय में भारी असंतोष देखा जा रहा है। सर्वेक्षण में ब्राह्मणों की संख्या 15.64 लाख बताई गई है, जबकि ब्राह्मण संगठनों का दावा है कि यह आंकड़ा 42 लाख से अधिक है।
अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा ने कहा है कि वे सरकार द्वारा आज (17 अप्रैल) की कैबिनेट बैठक में लिए जाने वाले निर्णय का इंतजार करेंगे, इसके बाद ही कोई आंदोलनात्मक निर्णय लिया जाएगा। सर्वे के अनुसार, 11.85 लाख लोगों ने खुद को सिर्फ ‘ब्राह्मण’ बताया है, जबकि शेष 3.79 लाख 58 उप-जातियों में विभाजित हैं।

पूर्व कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड (KSBDB) के अध्यक्ष एच एस सच्चिदानंद मूर्ति ने दावा किया कि राज्य में 42.5 लाख ब्राह्मण हैं। उन्होंने कहा, “मैंने अपने कार्यकाल में स्वयं सर्वेक्षण करवाया था। यदि सरकारी योजनाओं के लिए सिर्फ इन आंकड़ों को आधार बनाया गया तो हमारे साथ अन्याय होगा।”
अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा के निवर्तमान अध्यक्ष अशोक हरनाहल्ली का भी कहना है कि ब्राह्मणों की संख्या लगभग 45 लाख होनी चाहिए और सर्वेक्षण के आंकड़े गलत हैं।
सबसे बड़ी उप-जाति गौड़ सारस्वत ब्राह्मण है, जिनकी संख्या 1.14 लाख बताई गई है। इसके बाद हव्यक ब्राह्मण (86,595), स्मार्त ब्राह्मण (23,249), और माधव ब्राह्मण (13,302) का नंबर आता है। वहीं, 2015 के सर्वे में केवल 36 कश्मीरी पंडित दर्ज किए गए थे।
बीजेपी प्रवक्ता और अयंगार समुदाय के सदस्य विजय प्रसाद ने सर्वेक्षण को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा, “यह तथ्यों से छेड़छाड़ कर बनाई गई रिपोर्ट है, जो एक संकीर्ण एजेंडे को पूरा करने के लिए तैयार की गई है।”
सर्वेक्षण में दैवज्ञ ब्राह्मण (80,155), दैवंग ब्राह्मण (5,420) और विश्व ब्राह्मण (32,553) जैसे उप-समुदायों की भी गिनती की गई है, जिन्हें विष्वकर्मा समुदाय के तहत वर्गीकृत किया गया है। इस पर सच्चिदानंद मूर्ति ने स्पष्ट किया कि “विश्व ब्राह्मण असल में ब्राह्मण हैं, जबकि दैवज्ञ विष्वकर्मा माने जाते हैं।”
जातिगत वर्गीकरण और वास्तविक आंकड़ों को लेकर उठा यह विवाद आने वाले दिनों में कर्नाटक की राजनीति और आरक्षण व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
