शीर्ष अदालत ने निर्भया कांड के चार आरोपियों में से एक आरोपी के वारदात के समय नाबालिग होने के बचाव पक्ष के दावें को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने दाखिल याचिका पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि पहले खारिज किए गए एक उम्र के दावे को दोबारा नहीं उठाया जा सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि हमें इस याचिका पर विचार करने के लिए कोई आधार नहीं मिला है।
नई दिल्ली। निर्भया कांड में फांसी की सजा से दंडि़त चार आरोपियों में से एक पवन गुप्ता के वारदात के समय नाबालिग होने का दावा करते हुए बचाव पक्ष के वकील एपी सिंह ने दलील दी थी कि अभियुक्त के स्कूल के प्रमाण पत्र से पता चला है कि वह अपराध के समय नाबालिग था और किसी भी अदालत ने कभी इन दस्तावेजों पर विचार नहीं किया था। याचिका पर विचार के उपरांत शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार जब किशोर के मुद्दे की जांच की जाती है और अदालतों द्वारा खारिज कर दी जाती है तो इसे फिर से नहीं उठाया जा सकता है। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कितनी ही बार हम वही बातें सुनेंगे, जो आपने पहले ही कई बार उठाई हैं।
मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दोषी उस समय 19 वर्ष का था और उसके जन्म प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति के साथ-साथ प्रत्येक न्यायिक फोरम द्वारा स्कूल प्रमाण पत्र रिकॉर्ड में लिया गया था। पुलिस ने यह भी कहा कि पवन के माता-पिता ने उसकी उम्र की पुष्टि की थी और विवाद नहीं किया था कि वह 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ किए गए सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के समय 18 वर्ष से कम था। अपराध में गिरफ्तार किए गए छह लोगों में से एक उस समय एक किशोर साबित हुआ था और तीन साल बाद सुधार गृह में छोड़ दिया गया था।