ट्विन सिटी के बहुचर्चित अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर बचाव पक्ष द्वारा दी गई दलीलों को खारिज करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि इस हत्या को सुनियोजित षडयंत्र रचकर अंजाम दिया गया था। इस षडयंत्र में किम्सी कंबोज की भूमिका प्रमुख थी, जिसने अभिषेक को फोन कर घर बुलाया था और अजीत सिंह व विकास जैन ने मिलकर हत्या की वारदात को अंजाम दिया था। अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि अभियुक्तों ने जिस प्रकार का मेमोरेंडम बयान दिया था, उसी आधार पर हर वस्तु की बरामदगी पुलिस ने की है। हत्या के इस मामले पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जी.के. मिश्रा की अदालत में विचारण जरी है। प्रकरण पर अगली सुनवाई तिथि 24 दिसंबर निर्धारित की गई है।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। शंकरा एज्युकेशन सोसायटी के डायरेक्टर अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर जिला न्यायालय में सोमवार को हुई सुनवाई में अभियोजन पक्ष द्वारा 43 पेज का लिखित तर्क अदालत के समक्ष पेश किया। जिसमें 17 पेज न्यायायिक दृष्टांश के शामिल है। जिसमें बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज किया गया है कि अभिषेक का शव जिस मकान से बरामद हुआ था, उसमें किराए पर अजीत सिंह नहीं रहता था। अभियोजन पक्ष के विशेष लोक अभियोजक सुरेश शर्मा ने तर्क दिया कि अभियुक्त अजीत सिंह के मेमोरेंडम बयान में भी इसी स्थान में निवास किए जाने का उल्लेख है। इसके अलावा भूतल में किराए में निवास करने वाली सुनिता अग्रवाल ने भी इस बात की पुष्टि की है कि अजीत सिंह इसी मकान के प्रथम तल में रहता था। इसके अलावा अन्य दस्तावेज भी इस तथ्य की पुष्टि करते है जिसमें कि अजीत सिंह का निवास स्मृति नगर के उसी मकान में था जहां से अभिषेक का शव बरामद हुआ था। शव बरामदगी भी विकास जैन के मेमोरेंडम कथन के आधार पर ही हुई थी। वहीं शव के डीएनए टेस्ट से भी यह सिद्ध हो गया है कि जमीन में दफन शव अभिषेक मिश्रा का ही था।
मोबाइल लोकेशन के संबंध में अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि अभिषेक की गुमशुदगी के बाद भी अभियुक्त विकास जैन, अजीत सिंह और अभिषेक के मोबाइल लोकेशन समान टावर के होने के साथ ही एक रुट पर थे। अभियोजन पक्ष ने यह तर्क भी दिया कि अभिषेक को मोबाइल पर फोन कर चौहान टाउन वाले घर में किम्सी कंबोज जैन ने ही बुलाया था। वहीं हत्या के बाद किम्सी लगातार विकास जैन के संपर्क में थी। इसकी पुष्टि अभियुक्तों के कॉल डिटेल से होती है।
अभियोजन पक्ष ने बचाव पक्ष की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विकास व अजीत सिंह की गिरफ्तारी के बिना ही पुलिस ने मेमोरेंडम कथन लेकर कार्रवाई की थी। अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि किसी भी संदेही से जब पूछताछ की जाती है तो वह पुलिस अभिरक्षा में मानी जाती है। वहीं अभियुक्तों के मोमोरेंडम कथन के आधार पर ही पुलिस ने हर साक्ष्य, वस्तु की रिकवरी हुई और तथ्य का खुलासा हुआ है। इस संबंध में अभियोजन पक्ष की ओर से शीर्, अदालत के दृष्टांश भी अदालत के समक्ष पेश किए गए।