करोड़ो खर्च करने और दर्जनों स्वास्थ योजनाओं के क्रियांवयित होंने के बाद भी जिला अस्पताल का हाल बेहाल है। हाल ही में दर्द से कराहती प्रसूता को 14 घंटे बाद भी इलाज नही मिलने की जानकारी सामने आई है। यही नहीं प्रसूता को पर्याप्त इलाज देने की बजाय निजी अस्पताल में इलाज कराने की समझाइश देकर डिस्चार्ज कर दिया गया।
दुर्ग (छत्तीसगढ़) रितेश तिवारी। यह अमानवीय हरकत दुर्ग के जिला अस्पताल के मातृत्व शिशु विभाग में एक प्रसूता के साथ जिम्मेदार चिकित्सकीय अमले ने की है। तितुरडीह निवासी विकी सिन्हा की 23 वर्षीय पत्नी देवकी सिन्हा को रविवार सुबह 7 बजे प्रसव पीड़ा हुई जिसे सुबह आठ बजे दुर्ग में बने 100 विस्तर मातृ शिशु अस्पताल में भर्ती किया गया। दिन भर दर्द से कराहती रही प्रसूता को कोई देखने की जहमत किसी डॉक्टर नही उठाई। अस्पताल में मौजूद नर्स इलाज करती रही, 14 घंटे बीत जाने के बाद भी सबसे बड़े अस्पताल में प्रसूता की डिलेवरी नही हो पाई। आखिरकार गंभीर हालत मे प्रसूता को निजी अस्पताल में ले जाने के लिए रेफर कर दिया गया। जहां रात 10 बजे प्रसूता देवकी सिन्हा को पुत्र की प्राप्ति हुई। निजी अस्पताल के चिकित्सक के मुताबिक जिस वक्त प्रसूता को यहां लाया गया था उस दौरान हालात काफी गंभीर थी ऑपरेशन कर के डिलेवरी कराई गई वर्तमान में जच्चा बच्चा दोनो स्वास्थ है। परिजनो के मुताबिक जिला अस्पताल में कोई सुविधा नही है दिन भर प्रसूता तड़फती रही और गंभीर हालत में रात को रेफर कर दिया गया था।
अस्पताल में ऑपरेशन करने की कोई सुविधा नही है, जो सरकारी डॉक्टरों को उनके निजी क्लिनिक में दिखाते है उन्ही का जिला अस्पताल में पहले ऑपरेशन किया जाता है और बेहतर इलाज भी। आप को बता दे सीएम ने राशन कार्ड धारियों को भी मुफ्त में इलाज होने की बात कही है और स्वास्थ्य मंत्री ने सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज होने का आये दिन बिगुल ही बजाते नजर आते है लेकिन सच्चाई ये है कि एक गरीब आदमी का किसी भी सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज नही हो सकता सारी योजना दावे सिर्फ ढकोसला साबित हो रहा है। पूरे मामले की जानकारी जिला अस्पताल के सिविल सर्जन को भी थी उसके बाद भी प्रसूता को 14 घंटे तक दर्द से कराहना पड़ा उसके बाद 30 हजार खर्च कर निजी अस्पताल का सहारा लेना पड़ा।