कोरबा में मिले पुरातात्विक शैलचित्र, पुरातन काल से यहां आदिमानवों के रहवास की हुई पुष्टि

छत्तीसगढ़ की उर्जाधानी कोरबा को अब पुरातात्विक शैलचित्रों के मिलने से एक अलग पहचान मिला है। कोरबा जिले के विभिन्न दूरस्थ अंचलों में प्रागैतिहासिक काल से लेकर नवपाषाणकालीन 369 शैलचित्रों के मिलने का दावा किया है। कोरबा विकासखण्ड के गोल्हर गांव (छातीपाठ) के लिखाभाड़ा क्षेत्र में एक साथ 173 महत्वपूर्ण शैलचित्र मिले हैं। इन शैलचित्रों में तलवारधारी घुड़सवार, अश्व, हिरण, मयूर, मुर्गी से लेकर शेरों वाली हाथ जोड़ी और अन्य ज्यामितीय चिन्हों के शैलचित्र विभिन्न पहाडिय़ों में खोजे गए हैं। पुरातन काल से ही आदिमानवों के इस क्षेत्र में लम्बे समय तक रहवास की पुष्टि भी इन शैलचित्रों से हो रही है।

रायपुर (छत्तीसगढ़)। कोरबा जिले में मिले यह सभी शैलचित्र ई.पू. ढाई हजार साल से दस हजार साल पुराने माने जा रहे हैं। जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक श्री हरि सिंह क्षत्री और उनके सहयोगियों ने यह खोज की है। गोल्हर गांव में मिले शैलचित्रों में खडग़धारी अश्वारोही, हिरण, मयूर, अष्व, मुर्गी, मानव ज्यामितीय चिन्हों के शैलचित्र शामिल हैं। इन शैलचित्रों में सफेद और लाल रंग के शैलचित्र भी हैं। गोल्हर गांव के शैलचित्रों में एक चित्र के उपर दोबारा चित्र बनाये जाने के भी स्पष्ट प्रमाण हैं। जिससे यह जानकारी मिलती है कि इस क्षेत्र में आदिमानव लम्बे समय तक रहे हैं। कोरबा विकासखण्ड के ही ग्राम सोनारी में दो रॉक आर्ट सेल्टरों में से शेरों वाली हाथाजोड़ी गुफा में हाथ के पंजे के तीस, जानवरों के दो समूहों के शैलचित्र सहित कुल चालीस की संख्या में शैलचित्र मिले हैं। इसके साथ ही एक और सेल्टर में हाथ के पंजे के नौ और शैलचित्र भी खोजे गये हैं। पास ही धसकनटुकू नाम की जगह पर हाथ के पंजे के सात, दण्डनुमा एक और अन्य प्रकार के तीस और शैलचित्रों को खोजा गया है।
कोरबा विकासखण्ड के ही ग्राम अरेतरा के तीन विभिन्न रॉक सेल्टरों में सीताचैक में 34 शैलचित्र मिले हैं जिनमें हाथ के पंजे के 16, ज्यामितीय प्रकार के 16, और दो जानवरों के हैं। इसी गांव में हाथामाड़ा पहाड़ी पर हाथ के पंजों के 65 शैलचित्र और गढ़पहरी में अत्यंत धुमिल अवस्था में 3 अन्य शैलचित्रों की खोज की गई है। इन शैलचित्रों की खोज में हरि सिंह क्षत्री को मोतीलाल, भाटीलाल, गंगाराम, चमारूराम और बुधवारो बाई मंझवार ने भी सहयोग किया है।
2012 से जारी है शैलचित्रों के मिलने का सिलसिला
आपको बता दें कि जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री ने ही जिले में सबसे पहले 8 नवम्बर 2012 को करतला विकासखण्ड के सुअरलोट ग्राम के दुल्हा-दुल्ही पहाड़ी पर शैलचित्रों को खोजा था। जिसके बाद 22 मई 2013 को इसी ग्राम के सीता चैकी में भी अत्यंत महत्वपूर्ण शैलचित्र मिले थे। 28 मई 2016 को फुटका पहाड़ अजगरबहार के पास केरा गुफा (मछलीमाड़ा) और सतरेंगा के पास महादेव पहाड़ी पर पंजों के निषान के 10 शैलचित्र मिल चुके हैं। जिला निर्माण के बाद सबसे पहले जिला पुरातत्व संघ के माध्यम से कोरबा में व्याप्त पुरानिधियों की सर्वे और खोज शुरू हुई थी। स्थानीय इंदिरा स्टेडियम के हॉल नंबर 3 में उस समय अस्थायी संग्रहालय भी बनाया गया था। जिले में लगातार बढ़ती पुरानिधियों की संख्या को देखते हुये 2013 में संस्कृति विभाग तथा नगर निगम कोरबा ने मिलकर घण्टाघर ओपन थियेटर में वृहद पुरातत्व संग्रहालय स्थापित किया और जिले के पुरातात्विक वैभव से अवगत कराने उसे आमजनों के लिये भी खोल दिया गया।