संसद में केंद्र सरकार ने कहा रामसेतू के पुख्ता सबूत नहीं : सीएम बघेल ने कहा भाजपा ने देश को किया गुमराह, माफी मांगे

रायपुर (छत्तीसगढ़)। देश की संसद में केंद्र सरकार ने कहा है कि रामसेतू के पुख्ता सबूत नहीं है। इसे लेकर कांग्रेस भाजपा पर हमलावर हो गई है। शनिवार को रायपुर में पुलिस लाइन हैलीपैड पर इस मुद्दे पर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि देखिए जब यही बात कांग्रेस सरकार के वक्त कही गई थी तो राम विरोधी कहा गया। अब खुद कह रहे हैं, तथाकथित राम भक्त बनने वाले भाजपा के लोग सदन में कह रहे हैं कि राम सेतू के पुख्ता सबूत नहीं है, अब इन्हें किस श्रेणी में रखा जाएगा। भाजपा को देश से माफी मांगना चाहिए इन लोगों द्वारा देश के लोगों को गुमराह किया गया।

बघेल ने कहा कि भाजपा के लोग अब खुद ही कटघरे में खड़े हो गए हैं। यदि भाजपा के लोग सच में राम भक्त होेते तो अपनी सरकार से सवाल पूछते, विरोध करते, आलोचना करते, यदि नही पूछ रहे तो इनका मूल चरित्र यही है। इनका मूल चरित्र है सत्ता प्राप्ति करना। राम नाम जपना पराया माल अपना, ये इनका मूल चरित्र है।

बता दें कि सरकार ने संसद में कहा है कि भारत और श्रीलंका के बीच रामसेतु के पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं। स्पेस मिनिस्टर जितेंद्र सिंह बीते गुरुवार को भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के रामसेतु पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा- जिस जगह पर पौराणिक रामसेतु होने का अनुमान जाहिर किया जाता है, वहां की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई हैं। छिछले पानी में आइलैंड और चूना पत्थर दिखाई दे रहे हैं, पर यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही रामसेतु के अवशेष हैं। राज्यसभा में उन्होंने कहा, ‘टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ हद तक हम सेतु के टुकड़े, आइलैंड और एक तरह के लाइम स्टोन के ढेर की पहचान कर पाए हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह पुल का हिस्सा हैं या उसका अवशेष हैं।’ उन्होंने कहा- मैं यहां बता दूं कि स्पेस डिपार्टमेंट इस काम में लगा हुआ है। रामसेतु के बारे में जो सवाल हैं तो मैं बताना चाहूंगा कि इसकी खोज में हमारी कुछ सीमाए हैं। वजह यह है कि इसका इतिहास 18 हजार साल पुराना है और, अगर इतिहास में जाएं तो ये पुल करीब 56 किलोमीटर लंबा था।

आपको याद होगा कि 2005 में मनमोहन सराकर ने सेतुसमुद्रम नाम से एक बड़ी जहाजरानी नहर परियोजना का ऐलान किया था। इसमें रामसेतु के कुछ इलाकों से रेत निकालकर गहरा करने की भी बात थी, ताकि पानी में जहाज आसानी से उतर सके। इस प्रोजेक्ट में रामेश्वरम को देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बनाना भी शामिल था। इससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच डायरेक्ट समुद्री मार्ग खुल जाता। इससे व्यवसाय में 5000 करोड़ का फायदा होने का अनुमान था। 2007 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह सेतु इंसानों ने बनाया है। जब इस मुद्दे पर विरोध और धार्मिक भावनाएं भड़कने लगीं तो सरकार ने अपना हलफनामा वापस ले लिया।

भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है। इसे भारत में रामसेतु और दुनियाभर में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 30 मील (48 किमी) है । यह पुल मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। जिससे यहां बड़ी नावें और जहाज चलाने में खासी दिक्कत आती है। कहा जाता है कि 15 शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया जिसके बाद यह पुल समुद्र में डूब गया। 1993 में नासा ने इस रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं जिसमें इसे मानव निर्मित पुल बताया गया था।

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