रायपुर (छत्तीसगढ़)। राज्य में फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र के जरिए वास्तविक आदिवासियों का हक मारे जाने का मामला तूल पकड़ने लगा है। आरोप है कि प्रमाण फर्जी होने की पुष्टि होने के बाद भी अफसर कोर्ट से स्टे का सहारा लेकर आईएएस तक बन गए हैं। शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं होनेे से इस मुद्दे को लेकर आदिवासी समाज उद्वेलित नजर आ रहा है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी कोटे से राज्य प्रशासनिक सेवा में आए ईसाई समुदाय के एक अफसर को बीते महीने आइएएस बना दिया गया। फर्जी जाति प्रमाण पत्र की वजह से उनकी पदोन्नति तीन साल से अटकी था। करीब 13 साल पहले उनका जाति प्रमाण पत्र निरस्त करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। इस आदेश के खिलाफ वह कोर्ट से स्टे लेकर आ गए और नौकरी पर फिर से काबिज हो गए। राज्य में ऐसे कई मामले हैं। आदिवासी समाज ऐसे लोगों पर लगातार कार्रवाई की मांग कर रहा है। एक वर्ष पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसे मामलों में शीघ्र फैसला लेने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक ऐसे एक भी मामले में निर्णय नहीं हुआ है।
सेवानिवृत्त आइएएस और कांग्रेस के आदिवासी विधायक शिशुपाल सोरी के नेतृत्व में आदिवासी समाज ने मुख्यमंत्री बघेल को 245 अधिकारियों-कर्मचारियों का सूची सौंपी है। इनपर गलत दस्तावेज की मदद से नौकरी पाने का आरोप है। दावा किया गया है कि फर्जी तरीके से नौकरी करने वालों को सरकार हर साल करीब छह करोड़ रुपये वेतन बांटती है।
दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश में अब तक अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी वर्ग से ऐसी ही कुल 580 शिकायतें मिल चुकी हैं, इनमें 245 मामले फर्जी पाए गए, 220 सही मिले, 115 की जांच जारी है। इनमें हाईकोर्ट में तीन दर्जन मामले लंबित हैं। विभागों में दो सौ कर्मचारियों के प्रमाणपत्रों की जांच में वे दोषी पाए गए हैं। इनमें मंत्रालय में ही करीब दो दर्जन शामिल हैं। फर्जी प्रमाण पत्रों के मामले 17 वर्षो से लंबित है। कई हाईकोर्ट से स्टे लेकर बैठे हुए हैं। कुछ ने तो ड्यू स्टे ले लिया है।
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने बताया कि स्तरीय छानबीन समिति ने 60 ऐसे अधिकारी-कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए हैं जो सरकार के 28 विभागों में काम कर रहे हैं। हमारे पास ऐसे ढ़ाई-तीन सौ लोगों की सूची है जो फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आदिवासियों का हक मार रहे हैं। पिछले महीने ऐसे ही एक अफसर को आइएएस बना दिया गया है। ऐसे मामलों को लेकर हम 10-15 साल से लगातार संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अफसर ध्यान ही नहीं देते। कुछ लोग कोर्ट से स्टे लेकर बैठ गए हैं। इससे वास्तविक आदिवासियों को नुकसान हो रहा है।