
रायपुर, 7 अप्रैल:
जब देश स्वतंत्रता की भावना का उत्सव मना रहा है, तब छत्तीसगढ़ के योगदान को भी गर्व के साथ याद किया जा रहा है। यह राज्य, भले ही इतिहास की मुख्य धारा में कम दिखा हो, लेकिन यहां के कई वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ डटकर संघर्ष किया।
ऐसे ही एक महान नेता थे ठाकुर प्यारेलाल सिंह, जो स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। 1891 में रायपुर में जन्मे प्यारेलाल सिंह गांधी जी के विचारों से प्रेरित थे और उन्होंने छत्तीसगढ़ में स्वदेशी और असहयोग आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। वे मजदूरों और किसानों के हक के लिए भी निरंतर कार्यरत रहे और छत्तीसगढ़ में सबसे पहले ट्रेड यूनियन की स्थापना की।

एक और प्रभावशाली शख्सियत थीं मिनी माता, जिन्होंने आदिवासी अधिकारों और महिला सशक्तिकरण के लिए जीवन भर संघर्ष किया। हालांकि उनका प्रमुख राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता के बाद शुरू हुआ, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने आदिवासी समुदायों को संगठित करने और महिलाओं में शिक्षा के प्रसार के लिए उल्लेखनीय काम किया।
राज्य भर में इन वीरों की स्मृति में विभिन्न कार्यक्रम, प्रदर्शनियाँ और संगोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं, जिनमें स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक स्थलों पर विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का मानना है कि इन महान सेनानियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी चाहिए।
“ये नेता भले ही राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रसिद्ध न हों, लेकिन उनका साहस और बलिदान किसी से कम नहीं था,” रायपुर विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. एस.के. वर्मा ने कहा। “छत्तीसगढ़ का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अब स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए।”
देश आगे बढ़ रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ इन नायकों की गाथा को सहेजकर नई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
