स्तम्भ लेखन ने व्यंग्य को समृद्ध, सशक्त और लोकप्रिय बनाया : विनोद साव

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। भारतेंदु युग से लेकर परसाई युग तक व्यंग्य विधा को अखबारों और पत्रिकाओं के व्यंग्य स्तंभों ने समृद्ध, सशक्त और लोकप्रिय बनाया। वहीँ समकालीन व्यंग्य पर अपने पूर्ववर्ती व्यंग्यकारों जैसा साहस नज़र नहीं आ रहा क्योंकि हम सुरक्षात्मक लेखन के दौर से गुजर रहे हैं।
यह विचार देश के लोकप्रिय व्यंग्यकारों के व्यंग्यधारा समूह की राष्ट्रीय ऑनलाइन संगोष्ठी में उभर कर आए। रविवार को आयोजित इस संगोष्ठी में देश के सुपरिचित व्यंग्यकार विनोद साव और शशिकांत सिंह शशि ने ‘समकालीन व्यंग्य और अखबारी स्तम्भ’, विषय पर अपने विचार प्रकट किये। दोनों ने संगोष्ठी से ऑनलाइन जुड़े व्यंग्यकारों के सवालों के ज़वाब भी दिए। संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी और व्यंग्य आलोचक प्रोफ़ेसर रमेश तिवारी ने किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि व्यंग्य की समृद्धि स्तंभों के माध्यम से ही सम्भव हुई। स्तंभों ने व्यंग्य को लोकप्रिय व जनोपयोगी बनाया। व्यंग्य का उदेश्य लोक शिक्षण और जनमत बनाना है। उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल, मनोहर श्याम जोशी, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रेम जनमेजय, रमेश सैनी तक के दौर की चर्चा करते हुए अनेक उदाहरणों के माध्यम से अखबारी स्तम्भ और समकालीन व्यंग्य पर विस्तृत विचार रखे।
वरिष्ठ व्यंग्यकार शशिकांत सिंह शशि ने कहा की समकालीन व्यंग्य में वह तेवर नज़र नहीं आ रहा जो परसाई युग में हुआ करता था। आज व्यंग्य जनवादी दृष्टिकोण से हटकर मनोरंजन पर आ टिका है। आज हम सुरक्षात्मक लेखन के दौर में हैं, जहाँ व्यंग्य लेखन का उदेश्य सम्मान और पुरस्कार पाना अधिक रह गया है। उन्होंने अखबारी स्तम्भ की चर्चा करते हुए इस तथ्य को ख़ारिज कर दिया कि व्यंग्य एक शब्द सीमा में अपने सही रूप और तेवर में नहीं आ पा रहा है। उन्होंने कहा कि जब कवि एक दोहे में या शायर एक शेर में गहरी बात रख सकता है तो व्यंग्यकार दो सौ –चार सौ शब्दों में अपनी बात क्यों नहीं कह सकता। व्यंग्य में सामाजिक व मानवीय सरोकारों की महत्ती आवश्यकता है।
संगोष्ठी में देश के अलग नगरों में सक्रिय व्यंग्यकारों – प्रभाशंकर उपाध्याय , बुलाकी शर्मा , प्रभात गोस्वामी , संजय पुरोहित सहित विवेक रंजन श्रीवास्तव, अनूप शुक्ल, टीकाराम साहू, बलदेव त्रिपाठी, दिलीप तेतरवे, अरुण अर्नव खरे, सुधीर कुमार चौधरी सहित अनेक व्यंग्यकारों ने दोनों विषय विशेषज्ञ व्यंग्यकारों विनोद साव और और शशिकांत ‘शशि’ से अनेक सवाल किए जिनके उत्तर दिए गए।
संगोष्ठी में ईश्वर शर्मा, पिलकेन्द्र अरोरा, मलय जैन, अलका अग्रवाल, वीना सिंह, कैलाश मंडलेकर, हनुमान मिश्र, स्नेहलता पाठक, राजशेखर चौबे, संतोष त्रिवेदी, कुमारी अपर्णा, रेनू देवपुरा सहित देश के विभिन्न राज्यों से व्यंग्यकार उपस्थित थे। सभी का आभार व्यंग्यकार राजशेखर चौबे ने प्रकट किया।