बस्तर की जीवनदायिनी कही जाने वाली इंद्रावती नदी आज खुद अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर तिमेड़ नदी में अब जल प्रवाह न के बराबर रह गया है। नदी की धार इतनी पतली हो गई है कि कई जगहों पर रेत के मैदान नजर आने लगे हैं।
तिमेड़ ब्रिज से गुजरने पर चारों ओर सूखी धरती और बंजर नज़ारे देखने को मिलते हैं। नदी के एक कोने में महाराष्ट्र की ओर कुछ जल जरूर ठहरा हुआ है, पर अनुमान है कि आने वाले दिनों में वहां भी सूखा ही सूखा नजर आएगा।

भोपालपटनम ब्लॉक सहित कई पंचायतों को इसी इंद्रावती से फिल्टर पानी उपलब्ध होता है, लेकिन बढ़ती गर्मी और घटते जल स्तर के कारण हालात दिन-ब-दिन भयावह होते जा रहे हैं। फिलहाल जहां पानी फिल्टर प्लांट तक पहुंच रहा है, वो स्रोत भी अस्थाई राहत भर है।
नगर के बड़े तालाबों में पानी सिमटकर एक कोने में रह गया है, ज़मीनें फट रही हैं, और छोटे तालाब पूरी तरह सूख चुके हैं। नालों में पानी नहीं बचा। स्थिति साफ बता रही है कि जल संकट दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है।
तेलंगाना में पानी की भरपूर व्यवस्था, बस्तर में सूखा!
तेलंगाना राज्य ने अपने हिस्से के पानी को डैम और बैराजों के ज़रिए स्टोर कर रखा है, जिसका उपयोग सिंचाई और अन्य आवश्यकताओं के लिए पूरे साल किया जा रहा है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के किसान केवल बरसात के पानी पर निर्भर हैं। धान के अलावा दूसरी फसल की कोई सुविधा या संसाधन नहीं है।
तेलंगाना की परियोजनाओं से छत्तीसगढ़ को खासा नुकसान भी हो रहा है। तारलागुड़ा क्षेत्र में बन रहे डेम के कारण डुबान की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बरसात में नेशनल हाईवे तक जलमग्न हो जाता है, जिससे यातायात बाधित होता है।
ओडिशा और तेलंगाना की योजनाओं में पिस रहा बस्तर
इंद्रावती नदी ओडिशा से निकलकर बस्तर के बीच से होते हुए तेलंगाना की ओर जाती है। ओडिशा सरकार कई बड़े डैम बना चुकी है, जिससे बस्तर की ओर पानी की आपूर्ति बाधित हो रही है। उधर, तेलंगाना भी नदी से अधिकतम पानी निकाल रहा है।
नतीजा यह है कि बस्तर के लोग—जो इस नदी के मध्य में बसे हैं—सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
सरकार की इस मुद्दे पर चुप्पी और उदासीनता ने बस्तर के जल संकट को और भी गंभीर बना दिया है। आने वाले समय में यदि प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट त्रासदी में बदल सकता है।
