समय पर इलाज नहीं मिलने से हृदय रोगी की मौत, डॉ. रत्नानी सहित अपोलो बीएसआर, बीमा कंपनी पर लगा हर्जाना

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। समय पर हृदय रोगी का इलाज न किए जाने से मौत के मामले में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा हृदय रोग विशेषज्ञ सहित अपोलो बीएसआर व बीमा कंपनी के खिलाफ आदेश पारित किया गया है। आयोग ने पाया कि हृदय रोग विशेषज्ञ व अस्पताल प्रबंधन ने मरीज के परिजनों के निवेदन के बाद बेहतर इलाज के लिए हैदराबाद नहीं जाने दिया गया। साथ अस्पताल में समय पर इलाज उपलब्ध कराने में लापरवाही बरती गई। प्रकरण पर विचारण पश्चात आयोग अध्यक्ष लवकेश प्रताप बघेल ने तीनों अनावदेकों को 7 लाख 73 हजार रु. की हर्जाना राशि परिवादी को अदा करने का आदेश दिया है।
प्रकरण के लगभग 5 साल पुराना है। आयोग में दाखिल वाद के अनुसार मरीज खेमराज पंजवानी को सीने में दर्द की शिकायत के कारण बीएम शाह अस्पताल में 21 अगस्त 2015 को दाखिल कराया गया था। जहां अपोलो बीएसआर हॉस्पिटल जुनवानी में इलाज के लिए दिखाने की सलाह दी गई। अपोलो बीएसआर हॉस्पिटल में भर्ती होने के बाद डॉ. दिलीप रत्नानी ने 24 अगस्त 2015 से लगातार मरीज का इलाज किया जा रहा था। शुरू में मरीज को नॉर्मल बताया गया किंतु बाद में आईसीयू में रखा गया। जिसके बाद डॉ. दिलीप रत्ननी के शहर से बाहर होने का हवाला देकर आपेरणन को तीन दिन तक टाला गया। जिसके बाद मरीज को सीरियस बताते हुए डॉ. रत्नानी द्वारा परिजनों के 50 हजार रु. जमा कराने कहा गया। जिसके बाद डॉ. दिलीप रत्नानी ने कंप्यूटर पर दिखाया कि जो भी ब्लॉकेज उसे क्लियर कर ऑपरेशन कर दिया गया है किंतु शाम 3:15 बजे मरीज की मौत हो गई। मरीज की मौत पर संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर प्रकरण को जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।
विचारण पश्चात आयोग ने प्रमाणित पाया कि अनावेदकगण ने मरीज का बाईपास संबंधी इलाज करने में अत्यधिक देरी की। यदि वास्तव में मरीज 21 अगस्त 2015 को भर्ती करने के दिन सीरियस होता, तो उसके लंग्स और हार्ट बेडहेड टिकट के अनुसार सामान्य नहीं होते। अनावेदक डॉक्टर और हॉस्पिटल द्वारा मरीज के इलाज में संदेह उत्पन्न होता है।
आयोग ने की सख्त टिप्पणी
प्रकरण में पेश दस्तावेजों एवं प्रमाणों तथा दोनों पक्षों के तर्को के आधार पर जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल ने यह निष्कर्ष निकाला कि अनावेदक हॉस्पिटल में कोई कार्डियक सर्जन उपलब्ध नहीं था। वहीं परिवादी राज पंजवानी अपने पिता के अच्छे इलाज के लिए गंभीर था। गरीब परिवार होने के बावजूद सदस्य मरीज को हैदराबाद ले जाना चाहते थे और संपूर्ण दस्तावेज और सीडी के साथ हृदय रोग विशेषज्ञ से लाय लेना चाहते थे। लेकिन डॉ. रत्नानी और अस्पताल प्रबंधन इस बात से सहमत नहीं थे। साथ ही उन्होंने परिजनों के सामने इस निर्णय को लेकर नाराजगी भी जाहिर की थी। हृदय रोग विशेषज्ञ और अस्पताल प्रबंध्र के इस रवैये के कारण ऐसी परिस्थितियां निर्मित की जिससे परिवादी को बीच में ही यात्रा रोक कर भिलाई वापस आना पड़ा। जिसके बाद मरीज की मौत हो गई। आयोग ने कहा है कि किसी भी चिकित्सक का प्रथम दायित्व अपने मरीज के प्रति होता है। डॉक्टरी पेशे को ईश्वर के समकक्ष का दर्जा दिया गया है। पेशे में इस तरह की गतिविधियां निश्चित रूप से पेशे के सम्मान को कम करती है। यदि कोई डॉक्टर किसी मरीज का सिर्फ अपने लाभ के लिए इलाज करना चाहता है या अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए अपने परिचित डॉक्टर के पास भेजना चाहता है, जिसके लिए मरीज का परिवार सहमत नहीं है। तो निश्चित रूप से डॉक्टर का उक्त कृत्य घोर व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी का है।
क्षतिपूर्ति अदा करने के निर्देश
जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल ने प्रकरण को व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी में माना। उन्होंने माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के अनुसार मृत्यु की क्षति के रूप में परिवादीगण 6 लाख 72 हजार रूपये अदा करने का आदेश दिया है। साथ ही मानसिक क्षति के लिए 1 लाख रुपये का भुगतान परिवादी को करने का निर्देश दिया है। भगतान पर वाददाखिल दिनांक 15 मार्च 2016 से 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा।