सियासी संग्राम में जोरदार नारे

चुनाव के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच चुनावी नारे खूब रंग जमाते रहे हैं। शुरुआती चुनाव से मौजूदा दौर तक चुनावी नारे सियासी दलों की विचारधारा की तस्वीर को जनता के बीच साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन्हीं नारों की पतवार के सहारे कई पार्टियों की नैया भी पार लगी है तो कई बार कुछ नारे जमीदोज भी हो गये। अब तो चुनावी नारों के साथ-साथ राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने से लेकर मतदाताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने तक, लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मों के कई हास्य तत्वों सहित रंगीन मीम्स की सोशल मीडिया पर बाढ़ भी देखने को मिलती है, इंस्टाग्राम से लेकर एक्स तक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चुनावों से पहले राजनीतिक बढ़त के लिए कड़वे पोस्टर युद्ध और यहां तक कि कड़वे मीम की लड़ाई भी देखी जा सकती है। मतदाताओं, विशेषकर युवा और पहली बार मतदाताओं तक पहुंचने के लिए मीम्स का इस्तेमाल किया है, जो कई बार विचित्र होते हैं।
लोकसभा चुनाव में सबसे पहला लोकप्रिय नारा सन 1971 के आम चुनाव में गरीबी हटाओ रहा। इस नारे की गूंज गली-गली तक रही और इंदिरा गांधी को लोगों ने हाथों हाथ लिया था। असल में 1967 में जब इंदिरा गांधी चुनाव मैदान में उतरीं तो उस दौरान कांग्रेस का नारा सरकार बनाना खेल नहीं, इस दीपक में तेल नहीं सियासी फिजाओं में खूब गूंजा था, लेकिन 1971 में गरीबी हटाओ नारे के साथ इंदिरा गांधी ने लोगों से भावनात्मक रिश्ता कायम करने में सफलता हासिल की। आम लोगों के दिल को छूने वाला यही नारा एक बड़ा मुद्दा बन गया। चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी लोगों से कहती थीं कि वह कहते हैं कि इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ। इसी पर इंदिरा के समर्थन में एक और नारा लोकप्रिय हुआ…जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर।
1977 में जननायक जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस के खि़लाफ़ चुनाव में इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा दिया था। उस साल जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराकर जीत हासिल की और इसमें इस नारे का बहुत बड़ा हाथ था। 1996 और 1998 के चुनावी मैदान में राजतिलक की करो तैयारी आ रहे अटल बिहारी को खूब लोकप्रियता मिली, लेकिन इसके बाद हुए आम चुनाव में बीजेपी का इंडिया शाइनिंग नारा पूरी तरह से धाराशायी हो गया था। इसी चुनाव में समाजवादी पार्टी का मुलायम तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं भी खूब गूंजा था। 2014 से 2019  लोकसभा चुनाव में हर-हर मोदी और मोदी है तो मुमकिन है का नारा भी चुनावी रणक्षेत्र में खूब गूंजा। भाजपा की हर रैली में इस नारे का शोर रहा। इसका असर यह रहा कि 2014 में भाजपा का वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ा।  
           
आज की तारीख में लोकसभा चुनाव के लिए नारों का शोर गली-मोहल्लों में भले ही न सुनाई दे रहा हो, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुंच बना रहे हैं। इनका असर पहले से अधिक प्रभावी है। आजादी के बाद हुए आम चुनाव से अभी तक नारों के तेवर ने बनते बिगड़ते समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। कब जनता के बीच कौन सा नारा सिर चढ़ कर बोला इसकी बात की जाये तो वर्ष 1952 में खरा रुपैया चांदी का, राज महात्मा गांधी का और देश की जनता भूखी है,यह आजादी झूठी है खूब हवा में उछला था। इसी तरह वर्ष 1957 में जली झोपड़ी भागे बैल,यह देखा दीपक का खेल, जिस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं। वर्ष 1962 में, जाटव-मुस्लिम भाई-भाई, बाकी कौम कहां से आई। सिंहासन खाली करो जनता आती है। वर्ष 1967 में जय जवान जय किसान। वर्ष 1977 में बेटा कार बनाएगा, मां सरकार बनाएगी।यह नारा संजय गांधी और इंदिरा गांधी पर कटाक्ष करते हुए गढ़ा गया था। इसी के साथ जमीन गर्क चकबंदी में, मकान ढह गया हटबंदी में। दरवाजे पर खड़ी औरतें चिल्लाएं, मेरा मर्द गया नसबंदी में भी काफी प्रभावी रहा था।
वर्ष 1980 में इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर, का नारा लगा। वर्ष 1984 में जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा। उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं। वर्ष 1996 में ‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी।’ महंगाई जो रोक न पाई वो सरकार निकम्मी है जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है। वर्ष 2004 में शाइनिंग इंडिया, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ नारे की धूम रही थी। वर्ष 2014 में ‘अबकी बार मोदी सरकार, अच्छे दिन आने वाले हैं और हर हर मोदी, घर घर मोदी। वर्ष 2019 में ‘सबका साथ सबका विकास’, ‘मोदी है तो मुमकिन है। मोदी हटाओ, देश बचाओ, अब होगा न्याय। इस बार वर्ष 2024 में मोदी की गांरटी, अबकी पार 400 पार। कांग्रेस का हाथ बदलेगा हालात सपा का ‘घर घर बेरोजगार मांगे रोजगार” नारा चर्चा है।   
अब तो चुनावी नारों के साथ-साथ राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने से लेकर मतदाताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने तक, लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मों के कई हास्य तत्वों सहित रंगीन मीम्स की सोशल मीडिया पर बाढ़ भी देखने को मिलती है, इंस्टाग्राम से लेकर एक्स तक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चुनावों से पहले राजनीतिक बढ़त के लिए कड़वे पोस्टर युद्ध और यहां तक कि कड़वे मीम की लड़ाई भी देखी जा सकती है। मतदाताओं, विशेषकर युवा और पहली बार मतदाताओं तक पहुंचने के लिए मीम्स का इस्तेमाल किया है, जो कई बार विचित्र होते हैं। राजनीतिक पार्टियां प्रचार के साथ ही एक दूसरे पर हमला बोलने जबकि चुनाव आयोग वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने के लिए इनका प्रयोग कर रहा है। मीम के साथ ही स्लोगन पोस्टर फिल्मी डायलाग का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। चुनाव आयोग ने एक्स पर पोस्ट किया है कि हम मतदान को लेकर उत्साहित हैं क्या आप भी तैयार हैं। वहीं, राजनीतिक पार्टियों ने एक दूसरे पर हमले और प्रचार के लिए इसका प्रयोग किया है। भाजपा के सोशल मीडिया फीड पर मुख्य रूप से तस्वीरें और नारे हावी रहे हैं। जैसे मोदी की गारंटी और विकास भी, विरासत भी। वहीं, कांग्रेस ने एक्स पर वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें भाजपा पर व्यंग्यात्मक टैगलाइन, बेरोजगारी बहुत है, बाकी सब ठीक है,के साथ कटाक्ष किया गया।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राजनीतिक दलों के एक-दूसरे पर हमले जारी हैं। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक फोटो शेयर करते हुए उन्हें मीम मटीरियल ऑफ दि ईयर बताया। जिसके कैप्शन में लिखा, “ये अवॉर्ड तो बनता है।” दरअसल, बीते 09 मार्च  को दिल्ली के भारत मंडपम में पीएम मोदी ने क्रिएटर्स अवॉर्ड दिए। इसी दौरान की एक फोटो एडिट करके बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर शेयर की जिसमें पीएम मोदी राहुल गांधी को एक अवॉर्ड देते हुए दिख रहे हैं। इस अवॉर्ड पर ‘जोकर’ लिखा हुआ है। साथ ही अंग्रेजी में लाइन लिखी गई कि मीम मटीरियल ऑफ दि ईयर- राहुल गांधी। जिसका बीजेपी वालों ने कैप्शन लिखा, “ये अवॉर्ड तो बनता है।”