रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ मिलेट कार्निवाल के दूसरे दिन मिलेट की खेती एवं उपार्जन की चुनौतियां एवं अवसर पर केंद्रित संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें छत्तीसगढ़ में मिलेट मिशन के जरिए लघु वनोपजों के रकबा क्षेत्र, उत्पादकता एवं प्रसंस्करण विपणन को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कृषि सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह ने की। इस संगोष्ठी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल, सीजीएमएफटी फेडरेशन के एडिशनल एमडी आनंद बाबू, कलेक्टर रायपुर डॉ. सर्वेश्वर भूरे, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च डायरेक्टर डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, प्रिंसिपल रिसर्चर डॉ. अधिकांत प्रधान, डिंडोरी जिले के समनापुर ब्लाक में संचालित हस्तचलित महिला किसान प्रोड्यूसर कम्पनी की प्रतिनिधि भुवनेश्वरी ने मिलेट की खेती की नवीन विधियां, प्रसंस्करण एवं वनोपज आधारित आजीविका के कई अहम पहलुओं पर बात रखी।
कृषि सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह ने मिलेट मिशन के बारे में कहा कि किसानों को वनोपज आधारित आजीविका के लिए प्रेरित करते हुए राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की, ताकि किसानों को औने-पौने दाम में अपनी फसल न बेचनी पड़े। बाजार आधारित कृषि व्यवस्था में किसानों को समस्या आती थी इसलिए सरकार ने यह निर्णय लिया। मिलेट मिशन लागू होने के शुरूआती दो वर्ष में ही हमने 5 साल के लक्ष्य को पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में मिलेट मिशन को लेकर उत्पादकता मंे वृद्धि सबसे बड़ी चुनौती थी, जिससे निपटने के लिए लोकल वैरायटी को डेव्हलप करने का काम किया गया, अब किसान भी मिलेट की फसल लगाने पर रूचि ले रहे हैं। वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष घोषित किया गया है।
मिलेट्स के फायदों को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने भारत सरकार को स्कूली बच्चों, गर्भवती, शिशुवती माताओं के डाइट मंे भी मिलेट भोजन को शामिल करने का सुझाव दिया है।छत्तीसगढ़ मिलेट कार्निवालछत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाए जा रहे मिलेट्स मिशन के उद्देश्यों पर सीजीएमएफटी फेडरेशन के एडिशनल एमडी श्री आनंद बाबू ने प्रेजेन्टेशन के माध्यम से बात रखी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2021 में मिलेट मिशन की शुरूआत वनोपज उत्पादन के रकबा क्षेत्र को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि समर्थन मूल्य तय कर उत्पादकता, प्रसंस्करण, मिलेट की खपत और वनोपज आधारित आजीविका में वृद्धि की जा सके।
उन्होंने कहा कि राज्य शासन द्वारा मिलेट आधारित आजीविका को बढ़ावा देने के लिए कोदो 3000 रूपए, कुटकी 3100 रूपए, रागी 3570 रूपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर खरीदी की शुरूआत की और इसकी खरीदी एवं प्राथमिक प्रसंस्करण की व्यवस्था भी की। जिसके लिए जगदलपुर, कवर्धा, रायपुर, सूरजपुर में उत्पादकता एवं संग्रहण मात्रा को देखते हुए दो-दो यूनिट एवं कोण्डागांव, भानुप्रतापपुर, गरियाबंद, कटघोरा में दो मेट्रिक टन की क्षमता वाले एक-एक प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की गई है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि वर्ष 2011 से हम मिलेट पर काम कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मिलेट मिशन की पहल के बाद मिलेट्स की खेती करने वाले किसानों को भी इसका लाभ मिल रहा है। मिलेट्स की खेती आर्गेनिक विधियों द्वारा ज्यादा से ज्यादा रकबे में की जा सके, इसलिए उन्नत बीजों की उपलब्धता बेहद आवश्यक है। हम वनोपजों की विभिन्न वैरायटियों एवं आर्गेनिक विधियों पर लगातार शोध करते आ रहे हैं। हमने विश्वविद्यालय परिसर में प्रदेश के पहले मिलेट कैफे का शुभारंभ भी किया है, जहां प्रतिदिन तीन से चार हजार रूपए की आमदनी हो रही है। इस तरह से मिलेट कैफे की आमदनी महीने में 90 हजार से एक लाख रूपए तक हो जाती है। आज के समय में लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं और मिलेट्स की पोषकता को समझकर इससे बने व्यंजनों में रूचि भी ले रहे हैं।छत्तीसगढ़ मिलेट कार्निवालकलेक्टर रायपुर डॉ. सर्वेश्वर भूरे ने कहा कि आने वाले समय में मिलेट मिशन में राज्य सरकार द्वारा लघु वनोपज को बढ़ावा देने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। आने वाले समय में मिलेट्स की मांग बढ़ेगी। जिसकी पूर्ति के लिए पैदावार भी बढ़ानी होगी। भौगोलिक दृष्टिकोण से मिलेट्स की खेती के लिए छत्तीसगढ़ में अनेकों अवसर है। हमारे पास रकबा है और बहुत से किसान हैं, जो मिलेट्स की खेती कर रहे हैं। मिलेट मिशन को और विस्तार देने के लिए हम ज्यादा से ज्यादा उद्यमियों को इस क्षेत्र में जोड़ने का कार्य करेंगे।संगोष्ठी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च डायरेक्टर डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, प्रिंसिपल रिसर्चर डॉ. अधिकांत प्रधान, डिंडोरी जिले के समनापुर ब्लाक में संचालित हस्तचलित महिला किसान प्रोड्यूसर कम्पनी की प्रतिनिधि श्रीमती भुवनेश्वरी ने भी मिलेट की खेती एवं उपार्जन की चुनौतियों के संदर्भ में अपनी बात रखी।