मिलेट्स कार्निवाल में प्रसंस्करण और उनकी मूल्यवर्धन पर हुई परिचर्चा

रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ मिलेट्स कार्निवाल का तीन दिवसीय आयोजन राजधानी रायपुर के सुभाष स्टेडियम में किया जा रहा है। कार्निवाल के दूसरे दिन के दूसरे सत्र में मिलेट प्रसंस्करण और उनके मूल्यवर्धन पर परिचर्चा हुई। परिचर्चा में मिलेट उत्पादन से पहले और उसके बाद की प्रक्रियाओं पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के फूड प्रोसेसिंग विभाग के वैज्ञानिक नीरज मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र संगठन ने इंटरनेशनल ईअर ऑफ मिलेट्स घोषित किया है।

उन्होंने कहा कोदो, कुटकी और रागी समेत अन्य मिलेट्स में पोषक तत्वों की प्रधानता होती है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग और बस्तर संभाग सहित मध्य के कुछ जिलों में मिलेट्स का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है। भारत में प्रतिवर्ष 170 लाख टन मिलेट्स का उत्पादन होता है। यह एशिया महाद्विप का कुल 80 प्रतिशत और विश्व का कुल 20 प्रतिशत है। इसमें छत्तीसगढ़ का भी बड़ा योगदान है। कैंसर, कोलस्ट्रॉल, रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारी के मरीजों को डॉक्टर भी मिलेट्स लेने की सलाह देते है। फाइबर की प्रचुरता होने के चलते इसे पेट की समस्या के लिए भी उपयोग किया जाता है। रागी में सबसे ज्यादा मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। मिलेट्स के प्रसंस्करण के लिए पहले साधनों की कमी थी। वहीं, अब पर्याप्त मात्रा में इनके साधन उपलब्ध है।

स्क्रीन में प्रेजेंटेशन के माध्यम से आधुनिक मशीनों को दर्शा कर उनकी कार्य प्रणाली को समझाते हुए मिश्रा ने बताया कि मिलेट्स में छिलके एक, दो या तीन नहीं बल्कि सात से लेकर नौ परतों तक होती है। इसकी प्रोसेसिंग की प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है। नए मशीनों ने इस प्रक्रिया को भी अब आसान बना दिया है। मिलेट्स से अब केक, चॉकलेट, कुकीज, नूडल और पास्ता जैसे उत्पाद बनाए जा रहे है।

अवनी आयुर्वेदा कंपनी के अमरीश ने बताया कि कांकेर में 40 टन प्रतिदिन की क्षमता से कार्य किया जा रहा है। कोदो से आटा, सूजी, दलिया आदि बनाया जा रहा है।कवर्धा के डीएफओ चुड़ामणि सिंह ने बताया कि जिले में कोदो, कुटकी और रागी का उत्पादन भारी मात्रा में होता हे। मिलेट्स परंपरागत उत्पाद है। जिले में 5 वन धन केंद्रों में कोदो-कुटकी से आटा और अन्य उत्पाद बनाए जा रहे है। बोड़ला में मिलेट्स के लड्डू भी बनाए जा रहे है। छत्तीसगढ़ शासन के प्रचार-प्रसार के माध्यम से मिलेट्स उत्पाद की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

आईसीएआर-आईआईएमआर के डॉ. श्रीनिवास बाबू ने सुझाव देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए ब्लॉक, जिला और प्रदेश में अलग-अलग स्तर पर किसानों को मशीनों की उपलब्धता प्रदान की जानी चाहिए। छत्तीसगढ़ से मिलेट्स के निर्यात को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार भी मिलेट्स को बढ़ावा दे रही है। इसके संग्रहण को बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए।विशरा अग्रोटेक कंपनी के डॉ. जी अयप्पादासन बताते है कि उनकी कंपनी तामिलनाडू, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा के मिलेट्स केंद्रों में बिजली की जगह सोलर उपकरण लगाए जा रहे है। महिलाओं को मशीनों में काम करने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।शासकीय डी.बी. कन्या महाविद्यालय की डॉ. नंदा गुरवाला ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार मिलेट्स को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। जो लोग मिलेट्स से परिचित नहीं थे, उनमें भी जागरूकता आई है।

कोदो, कुटकी और रागी से अब ब्रेड, बिस्किट, प्रोटीन पाउडर, चॉकलेट बनाई जा रही है। यह कुपोषण के खिलाफ उपयोगी है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कोदो-कुटकी से बने उत्पाद का सेवन करना चाहिए। सभी को अपने दिनचर्या में इसे शामिल करने की प्राथमिकता रखनी होगी। बच्चों को इसे नूडल्स और पास्ता के रूप में खिलाया जा सकता है। शासकीय डी.बी. कन्या महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. अभया जोगलेकर ने बताया कि हरी क्रांति और नीली क्रांति के बाद अब मिलेट्स क्रांति लाना है। सबसे पहले हर घर में महिलाओं को इसकी शुरूआत करनी होगी। सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक हमें मिलेट्स को शामिल करने की जरूरत है।