स्वचालित ट्रैक-मशीन ने दी रेलवे को नई रफ्तार

नई दिल्ली| रेलवे को स्वचालित ट्रैक-मशीन ने नई रफ्तार दे दी है। अगले वित्तीय वर्ष में देशभर में 7000 किलोमीटर में नई लाइन बिछाने में अहम भूमिका निभाएगी ये मशीन। रेल मंत्रालय के अनुसार जहां पहले ट्रैक बिछाने में रेलवे इंजीनियर्स की घंटों की मशक्कत और मेहनत लगती थी उसे अब स्वचालित ट्रैक मशीन की मदद से आसानी से किया जा रहा है। इससे रेलवे के द्वारा ऐलान किए गए नए ट्रैक बिछाने के लक्ष्य को हासिल करने में बेहद मदद मिलेगी।भारतीय रेल का कहना है कि ट्रैक का रखरखाव यानी देखभाल भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। आज भारतीय रेल मॉडर्न ट्रैक मशीनों की मदद से रेल टैक की देखभाल कर रही है। व्यस्त रूट्स पर इन लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से स्पीड और क्वालिटी में बड़ा सुधार लाया है। इससे सुरक्षा में बढ़ोतरी हुई है और खर्च में भी गिरावट आई है।दरअसल रेल पटरी दिखने में जितनी साधारण होती है, उतना ही मुश्किल उसको बिछाने में आता है। पहले के समय में रेल पटरियों के नीचे लकड़ी और फिर लोहे की प्लेटें लगी होती थीं, लेकिन समय के साथ बदलाव हुए और अब कंक्रीट की प्लेटें लगाई जाती हैं। इन प्लेट को स्लीपर कहा जाता है। इन्हीं स्लीपर के नीचे ब्लास्ट (पत्थर के टुकड़े यानी गिट्टी) होती है। इसके नीचे अलग-अलग तरीके से दो लेयर में मिट्टी होती है। इस सबके नीचे सामान्य जमीन होती है। एक ट्रेन का वजन करीब कई मीट्रिक टन के बराबर होता है। जब पटरी पर ट्रेन चलती है तो उससे कंपन्न पैदा होता है। इस वजह से पटरियों के बढ़ने की संभावना होती है। इसलिए लिए ट्रैक पर ब्लास्ट बिछाये जाते हैं।गौरतलब है कि रेल मंत्रालय ने 1275 रेलवे स्टेशनों के नवीनीकरण और अगले साल के लिए 7000 किलोमीटर में न्यू लाइन, डबलिंग में और गेज कन्वर्जन में, नई पटरियां बिछाने का लक्ष्य तय किया है। पिछले एक साल (2022-2023) में 4500 किलोमीटर में न्यू लाइन, डबलिंग में और गेज कन्वर्जन में, नई पटरियां बिछाने का टारगेट तय किया गया था।