दुर्ग (छत्तीसगढ़)। नेशनल लोक अदालत का आयोजन 10 जुलाई को किया जाएगा। विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव ने समझौता योग्य प्रकरणों के अधिक से अधिक संख्या में निराकरण के लिए बीमा कंपनियों के अधिकारियों की वर्चुअल मिटिंग ली। जिसमें उन्हें लोक अदालत में राजीनामा योग्य प्रकरणों को प्रस्तुत किए जाने का निर्देश दिया। कोविड संक्रमण काल को देखते हुए नेशनल लोक अदालत फिजिकल एवं वर्चूअल दोनो मोड से आयोजित की जाएगी।
बैठक में राज्य में स्थित लगभग सभी बीमा कंपनियों के अधिकारियों से नेशनल लोक अदालत में रखे जाने वाले मोटर दुर्घटना दावा प्रकरणों राजीनामा के अंतिम स्तर तक पहॅूचाये जाने के संबंध में चर्चा की गई। बीमा कंपनी के अधिकारियों को दावा प्रकरण के पीड़ित पक्षकार को दावा राशि मेें समझौता राशि निर्धारित कर पीड़ित पक्षकार को अवगत कराये जाने तथा उनके लंबित प्रकरण को राजीनामा के स्तर तक पहुॅचाये जाने का प्रयास किये जाने पर जोर दिया गया।। उन्होंने बताया कि लोक अदालत असल में हमारे देश में विवादों के निपटारे का वैकल्पिक माध्यम है। इसे बोलचाल की भाषा में ‘लोगों की अदालत’ भी कहते हैं। इसके गठन का आधार 1976 का 42वां संविधान संशोधन है, जिसके तहत अनुच्छेद 39 में आर्थिक न्याय की अवधारणा जोड़ी गई और शासन से अपेक्षा की गई कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाए। लोक अदालत का मुख्य उद्देश्य है, विवादों का आपसी सहमति से समझौता कराना।
इन श्रेणियों के रखें जाएगें प्रकरण
प्री-लिटिगेशन प्रकरण से संबंधित धारा 138 पराक्रम्य लिखत अधिनियम, राशि वसूली प्रकरण, विद्युत /जल कर से संबंधित प्रकरण, पारिवारिक विवाद, सिविल प्रकरण।
न्यायालय में लंबित राजीनामा योग्य दाण्डिक प्रकरण, धारा 138 पराक्रम्य लिखत अधिनियम, मोटर दुर्धटना दावा प्रकरण, श्रम विवाद प्रकरण, पारिवारिक विवाद (तालाक को छोडकर), विद्युत प्रकरण, भूमि अधिग्रहण प्रकरण, अन्य सिविल ए एवं बी क्लास वाद।