रायपुर (छत्तीसगढ़)। किसान संगठनो के राष्ट्रीय आव्हान पर आज रविवार को छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी कृषि कानूनों के विरोध में ताली, थाली, ढोल व नगाड़ा बजाकर प्रदर्शन किया। किसानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात के प्रसारण के दौरान यह प्रदर्शन कर किसानों के आंदोलन को अपना समर्थन दिया। आयोजित किसान सभा में वक्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को हल्के में न लें क्योंकि हर वर्दी के पीछे एक किसान है। इसलिए सरकार दमनात्मक रवैया छोड़ किसान हित में बात करें।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आज पूरे देश के किसानों के साथ ही छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी गांव-गांव में मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ अपना विरोध प्रकट किया और किसान विरोधी तीन कानूनों और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग की। छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा सहित छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के सभी घटक संगठनों ने प्रदेश के सूरजपुर, कोरबा, मरवाही, रायपुर, धमतरी, सरगुजा, राजनांदगांव, गरियाबंद, बलौदाबाजार सहित 15 से अधिक जिलों में विरोध प्रदर्शन विभिन्न संगठनों के माध्यम से किया।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि मोदी को अपने मन की बात देश को सुनाने से पहले देश के जन-गण-मन की बात सुननी होगी। देश किसान विरोधी तीनों कानूनों और बिजली कानून में संशोधनों की वापसी चाहता है। पूरे देश के किसान आज अपनी खेती.किसानी को बचाने के लिए सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज मुक्ति चाहता है। मोदी सरकार के कानून से कृषि अर्थव्यवस्था को कार्पोरेटों के हाथों में सौंपना किसानों के लिए डेथ वारंट है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती, तो दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान दिल्ली कूच करने से नहीं हिचकेंगे। 29 दिसम्बर की वार्ता में सरकार को स्पष्ट करना होगा कि क्या वह इन कानूनों को वापस लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाना चाहती है या नहीं। सरकार के इस जवाब पर ही किसान आंदोलन के आगे के कार्यक्रम तय किये जायेंगे।