दुर्ग (छत्तीसगढ़)। हरेली में पाटन से किसानों और पशुपालकों के लिए बड़ी योजना की शुरुआत हुई। गोधन न्याय योजना के शुभारंभ के अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गोबर क्रय कर योजना की शुरुआत की। इसकी शुरुआत भी उन्होंने परंपरागत तरीके से की। बैलगाड़ी से आये, नागर की पूजा की और गायों की पूजा की। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि गोधन न्याय योजना के माध्यम से न केवल किसानों, पशुपालकों की आय बढ़ेगी अपितु जैविक खेती के लिए भी रास्ता खुलेगा। मिट्टी की उर्वरता को बचाने के लिए गोधन के पूर्ण इस्तेमाल के लिए यह बहुत आवश्यक है कि हम ऐसे जैविक उपाय अपनाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले पशुधन थे फिर बोझ हो गए जबकि सही तरीके से इस्तेमाल से पशुधन का संवर्धन भी होगा और तरक्की की राह भी खुलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर का क्रय होने से लोग पशुधन को घर में ही रखेंगे। इससे फसल भी सुरक्षित होगी। गोबर की वजह से पशुओं को पर्याप्त चारा भी उपलब्ध कराएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम ऐसे कार्य कर रहे हैं जिनसे प्रचलित मान्यताएं टूट रही है। जैसे कि छत्तीसगढ़ी में घाना है कि गुड़ गोबर होना। अब जबकि गोबर बिकेगा तो यह घाना भी बदलेगा। यह गोधन को समझने का, बुजुर्गों के बताए हुए परम्परागत ज्ञान की ओर बढ़ने का रास्ता है।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि मनरेगा के माध्यम से 35 लाख रोजगार सृजित किये गए जो देश में अधिकतम है। कोरोना लॉक डाउन के दौरान हमने सरपंचों को इस संबंध में प्रेरित करना आरंभ कर दिया था। इसका अच्छा परिणाम हुआ।
स्थापित किए जाएंगे रोजगार ठौर
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि गौठान को ग्रामीण आजीविका केंद्र के रूप में विकसित कर रहे हैं। यहां एक एकड़ भूमि में रोजगार केंद्र बनेगा। इसे रोजगार ठौर के नाम से जाना जाएगा।
सुपोषण अभियान के द्वितीय चरण की शुरुआत
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर सुपोषण अभियान के द्वितीय चरण की शुरुआत की। इसके लिए 300 दिन की कार्ययोजना बनाई गई है। इसकी बुकलेट का विमोचन भी मुख्यमंत्री ने किया।
नालों की रिचार्जिंग पर दे रहे ध्यान
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम लोग 1300 नालों की रिचार्जिंग पर काम कर रहे हैं। यह बड़ा कार्य है। इसके माध्यम से भूमिगत जल का तेजी से रिचार्ज होगा। जंगलों में भी फलदार पौधों का रोपण हो रहा है। बंदरों की वजह से ग्रामीण काफी परेशान होते हैं। अपने पर्यावास में ही पर्याप्त आहार मिल जाने से उन्हें गांवों की ओर रुख नहीं करना होगा। इस तरह ग्रामीण सरोकार के छोटे छोटे कार्यों से बड़ा बदलाव संभव है।