लंदन: भारत और ब्रिटेन के बीच हुए नए व्यापार समझौते ने जहां एक ओर आर्थिक संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं, वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश राजनीति में इसे लेकर जबरदस्त बहस छिड़ गई है। विपक्षी दलों का दावा है कि यह समझौता ब्रिटिश श्रमिकों को नुकसान पहुंचा सकता है और भारतीय श्रमिकों को “सस्ता विकल्प” बना सकता है।
विवाद की जड़ में है सामाजिक सुरक्षा अंशदान (National Insurance Contributions – Nics) को लेकर किया गया एक प्रावधान। समझौते के तहत, अब भारत से ब्रिटेन आए अल्पकालिक वीजा धारकों को तीन साल तक सिर्फ अपने देश में ही सोशल सिक्योरिटी टैक्स देना होगा — जिससे ब्रिटेन के नियोक्ताओं के लिए भारतीय श्रमिक अधिक सस्ते साबित हो सकते हैं।

राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़
कंज़र्वेटिव पार्टी की नेता केमी बडेनोक ने इस प्रावधान की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने जब व्यापार मंत्री थीं, तब इसी कारण इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उन्होंने इसे “दोहरी टैक्स प्रणाली” करार देते हुए कहा कि इससे ब्रिटेन को करोड़ों पाउंड का नुकसान हो सकता है।
लिबरल डेमोक्रेट्स की उप-नेता डेज़ी कूपर ने चेताया कि यह करार “ब्रिटिश श्रमिकों को कमज़ोर” कर देगा, जबकि रिफॉर्म यूके के नेता नाइजल फराज ने इसे “वास्तव में भयावह” बताया और कहा कि “यह सरकार श्रमिकों की बिल्कुल परवाह नहीं करती।”
सरकार का बचाव
हालांकि बिजनेस सेक्रेटरी जोनाथन रेनॉल्ड्स ने इन सभी दावों को खारिज करते हुए बताया कि इस तरह की कर राहत 50 से ज्यादा देशों के साथ पहले से ही लागू है और यह किसी भी सूरत में ब्रिटिश श्रमिकों को नुकसान नहीं पहुंचाएगी। उन्होंने इसे “UK के लिए बड़ी आर्थिक जीत” बताया जिससे “तेज़ विकास, ऊंची आय और ज़्यादा टैक्स रेवेन्यू” मिलेगा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय श्रमिकों को NHS सरचार्ज देना होगा और वे ब्रिटेन की राष्ट्रीय बीमा प्रणाली से मिलने वाले लाभों के पात्र नहीं होंगे।
व्यापारिक लाभ
इस समझौते के तहत ब्रिटिश कंपनियों को व्हिस्की, कार और अन्य उत्पादों के निर्यात में बड़ी राहत मिलेगी, वहीं भारत से कपड़े, जूते और आभूषण जैसे सामान पर टैक्स घटाया जाएगा। स्कॉच व्हिस्की पर 150% से घटाकर 40% तक टैरिफ कम करने की योजना है, जिससे अगले पाँच वर्षों में 1,200 नई नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है।
सरकारी अनुमान के अनुसार, यह डील 2040 तक सालाना £25.5 बिलियन तक व्यापार को बढ़ावा दे सकती है। इसके तहत पहली बार ब्रिटेन की कंपनियों को भारत के 40,000 से अधिक सरकारी टेंडरों (लगभग £38 बिलियन मूल्य के) में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा।
निष्कर्ष
जहां सरकार इसे ब्रेक्जिट के बाद की सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही है, वहीं विपक्ष इसे घरेलू श्रमिकों के लिए संकट मान रहा है। सच्चाई क्या है, इसका असर आने वाले वर्षों में ज़मीनी स्तर पर दिखाई देगा।
