स्कुल की अमानवीय व्यवहार से व्यथित दस वर्षीय छात्रा ने मुख्यमंत्री को लिखा मार्मिक पत्र, सीएम सर मुझे जाना है स्कूल, करनी है पढ़ाई

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सपनो को तार तार करने वाली ये खबर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक चुनौती है, जिन्हे जिले की जिम्मेदारी सौपी गई है। दिव्यांग छात्रा को फीस जमा नहीं करने के कारण क्लास में बैठने से वंचित कर दिया गया। अब छात्रा परिजनों के साथ जिम्मेवारों को सामने गुहार लगा रही है।

दुर्ग(छत्तीसगढ़) रीतेश तिवारी। यह मामला ट्विन सिटी के बहुचर्चित श्रीशंकाराचार्य विद्यालय हुडको भिलाई से संबंधित है। जहां एक दस वर्षीय दिव्यांग छात्रा को पिछले तीन महीनो से मानसिक प्रताडऩा का शिकार होना पड़ रहा है। इसके जिम्मेदार कोई और नहीं विद्यालय के प्राचार्य और संचालक है। छात्रा अविका पाल के मुताबिक शुरू से ही शंकाराचार्य विद्यालय में पढ़ाई कर रही है। विद्यालय दाखिला के दौरान जो भी शुल्क था, घरवालों ने जमा किया था और लगातार हर महीने फीस जमा कर रहे थे। कक्षा तीसरी में पहुंचने के बाद वर्तमान प्राचार्य राजकुमार शर्मा ने आगे की पढ़ाई के लिए पूरी फीस माफ कर दी थी।
छात्रा के मुताबिक उसकी बड़ी बहन भी इसी विद्यालय में पढ़ाई कर रही है जिसकी पूरी फीस घरवाले जमा कर रहे है। नये प्राचार्य ने माफ की गई पुरानी फीस कुल 40 हजार 600 रूपए जमा करने के लिए लगातार दिव्यांग छात्रा पर दवाब बनाया जा रहा है। यहाँ तक की छात्रा को क्लास रूम की जगह लाइब्रेरी रूम में दिन भर जबरन बैठाया जाता था। छात्रा ने अपनी पीड़ा को प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को पत्र लिख कर अवगत कराया है। साथ ही जिले के कलेक्टर अंकित आनंद, जिला शिक्षा अधिकारी सयुक्त संचालक शिक्षा विभाग को भी लिखित पीड़ा बताई है। सात फरवरी को लिखा पत्र आज भी लचर सरकारी तंत्र व्यवस्था के इर्द गिर्द घूम रहा है। विद्यालय ने छात्रा के परिजनों को हिदयात दी है जब तक पूरी फीस जमा नही करोगे तब तक ना तो छात्रा का पूर्व रिजल्ट दिया जाएगा और ना ही वर्तमान परीक्षा में बैठने दिया जाएगा।
छात्रा के परिजनों ने आखरी उम्मीद करते हुए दुर्ग के आयुक्त दिव्यांगजन कार्यालय में शिकायत की है जहां से कार्यवाही होने की किरण दिखाई दे रही है, लेकिन कब तक में छात्रा को न्याय मिलेगा ये कह पाना अभी संभव नहीं है। शिक्षा से वंचित करने का जो रवैया विद्यालय ने अख्तिायार किया है वह बेहद ही शर्मनाक है। उससे भी ज्यादा संवेदनहीन प्रशासनिक तंत्र है, जो बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का स्लोगन लिए घूम रहे है।
आपको बता दें सामान्य छात्रों के लिए 14 साल तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार मिला हुआ है, वही दिव्यांग छात्रों को 18 साल तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार का प्रावधान है। लेकिन प्रदेश भर में इस नियम के तहत किसी भी निजी विद्यालय ने दिव्यांग छात्रों को दाखिला नहीं दिया है। वहीं जिम्मेदार शिक्षा जगत के प्रशासनिक अधिकारी मौन बने बैठे। बहरहाल राज्य निशक्त आयुक्त कार्यालय के आश्वासन के बाद छात्रा और परिजनों को न्याय मिलने का इन्तजार है।

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