रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा में शुक्रवार को आपातकाल (1975-77) के दौरान मीसा (आंतरिक सुरक्षा अधिनियम) के तहत हिरासत में लिए गए लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन और अन्य सुविधाएं देने के लिए ‘छत्तीसगढ़ लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक-2025’ पारित कर दिया गया। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि राज्य में लोकतंत्र सेनानियों के हितों की रक्षा के लिए पहले से नियम मौजूद था, लेकिन अब इसे विधायी रूप से सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाया जा रहा है।
कांग्रेस ने जताई आपत्ति, किया सदन से बहिर्गमन
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस विधेयक पर आपत्ति जताई और सदन से बहिर्गमन किया। नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने सवाल उठाया कि क्या इस संदर्भ में कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानसभा को है? उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची का हवाला देते हुए कहा कि इस पर चर्चा करने का अधिकार राज्य को नहीं है।

सरकार का तर्क – विधेयक सामाजिक क्षेत्र से जुड़ा
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ विधायक अजय चंद्राकर ने कांग्रेस की आपत्ति पर जवाब देते हुए कहा कि यह विधेयक सामाजिक क्षेत्र से संबंधित है, जो समवर्ती सूची में आता है, इसलिए राज्य सरकार इसे पारित करने का अधिकार रखती है। सदन में चर्चा की अनुमति मिलने के बाद कांग्रेस विधायकों ने इसे संविधान विरोधी बताते हुए बहिर्गमन कर दिया।
लोकतंत्र सेनानियों के लिए विशेष प्रावधान
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने बताया कि कांग्रेस सरकार ने 29 जुलाई 2020 को इस नियम को खत्म कर दिया था, जिसे वर्तमान सरकार ने 7 मार्च 2024 को फिर से बहाल किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र सेनानियों को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की सुविधा दी जाएगी और उनके परिजनों को ₹25,000 की वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाएगी।
राज्य में 207 लोकतंत्र सेनानियों और 128 आश्रितों को वर्ष 2019 से अब तक मानदेय दिया गया है। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 में ₹42 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। अधिकारियों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में करीब 350 मीसा बंदी हैं, जिन्हें तीन श्रेणियों में ₹10,000 से ₹25,000 तक पेंशन दी जाएगी।
विपक्ष की अनुपस्थिति में विधेयक पारित
विधानसभा में चर्चा के बाद कांग्रेस सदस्यों की गैरमौजूदगी में यह विधेयक पारित कर दिया गया। अब इस कानून के तहत लोकतंत्र सेनानियों को सरकारी सम्मान और आर्थिक सहायता सुनिश्चित की जाएगी।
