छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: व्यभिचार में रहने वाली पत्नी को नहीं मिलेगा भरण-पोषण

रायपुर, 20 मई 2025 — छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि व्यभिचार में जीवन यापन करने वाली पत्नी को भरण-पोषण की राशि प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने एक महिला द्वारा पूर्व पति से 20,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि फैमिली कोर्ट द्वारा पूर्व में दी गई 4,000 रुपये की भरण-पोषण राशि को भी निरस्त कर दिया।

महिला ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उनका विवाह 2019 में हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ था, लेकिन कुछ वर्षों बाद उसके ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित किया और पति ने उस पर अवैध संबंध होने का शक किया। मार्च 2021 में महिला ने पति का घर छोड़ दिया और तलाक के लिए अर्जी दी, जो सितंबर 2023 में मंजूर हुई। नवंबर 2023 में महिला को फैमिली कोर्ट से 4,000 रुपये की भरण-पोषण राशि मंजूर की गई थी।

महिला ने दावा किया कि पति की कुल आय एक लाख रुपये है, जिसमें 25,000 रुपये नौकरी से, 35,000 रुपये किराए से और 40,000 रुपये खेती से आते हैं। इसके आधार पर उसने 20,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की थी।

वहीं, पति ने आरोप लगाया कि महिला का अपने ही भाई के साथ अवैध संबंध है, और जब उसने इसका विरोध किया तो महिला ने झगड़ा किया और केस दर्ज कराने की धमकी दी। पति ने यह भी कहा कि वह मात्र 17,131 रुपये कमाता है और उसका कोई अन्य आय स्रोत नहीं है।

पति के वकील ने दलील दी कि फैमिली कोर्ट ने तलाक के आदेश में यह साबित माना कि पत्नी व्यभिचार में लिप्त थी, और सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार ऐसी महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।

पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि “व्यभिचार में रहना” एक वर्तमान और निरंतर क्रिया होनी चाहिए, और यह साबित नहीं होता कि वह अब भी किसी अवैध रिश्ते में है, क्योंकि वह अब अपने भाई और भाभी के साथ रह रही है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा, “फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक का आदेश ही यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि पत्नी व्यभिचार में लिप्त थी।” कोर्ट ने यह भी कहा कि सिविल कोर्ट के आदेश के विपरीत जाकर कोई भिन्न दृष्टिकोण अपनाना संभव नहीं है।

इस फैसले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्यभिचार में रहने वाली पत्नी को भरण-पोषण की मांग करने का कानूनी अधिकार नहीं है।

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