भारत की अर्थव्यवस्था: तेज़ी से बढ़ते कदमों पर आई रुकावट

एक साल पहले, भारत कोविड-19 से आई मंदी से उबरते हुए दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा था। देश ने चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने का गौरव हासिल किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की इस उपलब्धि को हर मंच पर साझा कर रहे थे, और विदेशी निवेशक भी भारतीय बाज़ार में निवेश को लेकर उत्साहित थे।

विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से चौथे स्थान की ओर
2022 में भारत ने ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मुकाम हासिल किया था। उम्मीद है कि अगले साल तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथे स्थान पर पहुंच जाएगा। लेकिन इस आर्थिक विकास के बीच कुछ चुनौतियां भी उभर रही हैं।

शेयर बाज़ार और मुद्रा की गिरावट
भारत का शेयर बाज़ार, जो कई वर्षों तक तेज़ी पर था, ने पिछले छह महीनों की बढ़त को खो दिया है। वहीं, भारतीय मुद्रा रुपये की डॉलर के मुकाबले तेज़ी से गिरावट हो रही है, जिससे वैश्विक मंच पर घरेलू आय कम दिख रही है।

आर्थिक विकास में गिरावट
इस साल नवंबर में राष्ट्रीय सांख्यिकी ने खुलासा किया कि गर्मियों में अर्थव्यवस्था की वार्षिक वृद्धि दर 5.4% तक गिर गई। पिछले वित्तीय वर्ष में यह 8.2% थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए वृद्धि दर का संशोधित पूर्वानुमान 6.4% है।

विदेशी निवेशकों का भरोसा डगमगाया
विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाज़ार को ओवरवैल्यूड मानते हुए अपने निवेश वापस लेने शुरू कर दिए हैं। इस स्थिति को विशेषज्ञ “ट्रेंड में वापसी” कह रहे हैं। हैदराबाद के कूटिल्य स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर रथिन रॉय के अनुसार, यह आर्थिक विकास मुख्य रूप से बैंकों द्वारा व्यवसायों को दी गई अनियमित ऋण सुविधाओं पर निर्भर था।

2016 की नोटबंदी और कोविड-19 का प्रभाव
2016 में हुई नोटबंदी के बाद से अर्थव्यवस्था पूरी तरह से उबर नहीं पाई। कोविड-19 के कारण आर्थिक गिरावट और धीमी रिकवरी ने भी भारत की वृद्धि दर को प्रभावित किया।

चुनौतियों के बावजूद भविष्य की उम्मीद
हालांकि, भारत की दीर्घकालिक संभावनाएं और जनसंख्या-आधारित लाभ इसे वैश्विक मंच पर मजबूत खिलाड़ी बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे।

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