गुवाहाटी में हाल ही में करबी जनजाति की पारंपरिक खेल केंगडोंगडांग ने एक अनोखा कीर्तिमान स्थापित किया। बांस के स्टील्ट पर दौड़ने वाले 721 प्रतिभागियों ने 2 किलोमीटर लंबी लाइन बनाकर 10 मिनट तक चलकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। यह आयोजन करबी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें करबी समुदाय ने अपनी एकता और कुशलता का अद्भुत प्रदर्शन किया। इससे पहले का रिकॉर्ड केवल 250 प्रतिभागियों का था।
करबी जनजाति में बांस के स्टील्ट का उपयोग न केवल मनोरंजन के लिए बल्कि दैनिक जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए किया जाता था। करबी कला एवं संस्कृति विभाग के अनुसंधान अधिकारी दिलीप कथार बताते हैं, “बांस की यह छड़ी जहरीले मकड़ियों और सांपों से बचाव के लिए उपयोगी होती थी। यह जीवन रक्षा का एक साधन था।”
हालांकि, यह केवल उपयोगिता तक सीमित नहीं है। करबी और त्रिपुरा जैसे राज्यों में यह परंपरा एक खेल और समुदाय के मेलजोल का प्रतीक है। त्रिपुरा में कोलडम नामक खेल में लोग बांस के स्टील्ट का उपयोग करके कीचड़ और नदियों को पार करते हैं।
छत्तीसगढ़ में भी बांस का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है। भारतीय इतिहासकार अर्चना पोर्टे बताती हैं, “जनजातीय समाज में खेल परंपरा का हिस्सा हैं, जो आत्मविश्वास, सामाजिक एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं।”
उषा इंटरनेशनल ने बांस के स्टील्ट रेस को बढ़ावा देने के लिए बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में बांस रेस 2024 का आयोजन किया। “स्वदेशी स्पोर्ट्स की कहानियां” जैसे अभियानों के माध्यम से, कंपनी ग्रामीण खेलों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास कर रही है।
भारत की प्राचीन विरासत का हिस्सा यह खेल असम से लेकर छत्तीसगढ़ तक की सीमाओं को पार करता है। खेलो इंडिया योजना और उषा प्ले जैसी पहलें इस परंपरा को आधुनिक भारत में जीवित रखने के प्रयासों में जुटी हैं। इस प्रकार के खेल हमारे सांस्कृतिक गर्व और शारीरिक सहनशक्ति के प्रतीक हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित और समृद्ध करते रहेंगे।