नई दिल्ली, 23 मई 2025
पिछले एक महीने से भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) को निलंबित करने के फैसले का पाकिस्तान पर सीधा असर दिखने लगा है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने यह कदम उठाया था। इसके बाद से भारत ने पश्चिमी नदियों – विशेष रूप से चिनाब और झेलम – पर स्थित बांधों से पानी छोड़ने और रोकने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है।
सैटेलाइट इमेज और जल प्रवाह डेटा का विश्लेषण कर यह पाया कि बघलीहार और किशनगंगा बांधों पर फ्लशिंग ऑपरेशन लगातार किए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में पहले बांध को पूरी तरह भरा जाता है, फिर अचानक गेट खोलकर गाद और तलछट को बहा दिया जाता है। यह न सिर्फ जलाशय की क्षमता बढ़ाता है बल्कि हाइड्रोपावर उत्पादन को भी गति देता है।

पाकिस्तान की इंद्रस रिवर सिस्टम अथॉरिटी (IRSA) द्वारा साझा किए गए मराला डैम के जल प्रवाह आंकड़ों में अचानक गिरावट और फिर तेज उछाल दर्ज किया गया है।
- 2 मई को जल प्रवाह 8,087 क्यूसेक तक गिर गया,
- 3 मई को यह अचानक 55,148 क्यूसेक तक पहुंच गया,
- 6 मई को फिर गिरकर 3,761 क्यूसेक हो गया,
- 20 मई को यह फिर से 20,648 क्यूसेक तक उछला।
इस डेटा के पीछे भारतीय बांधों से की गई सटीक जल-नियोजन की रणनीति नजर आती है। बघलीहार डैम के सैटेलाइट चित्रों में 1 मई को फ्लशिंग के संकेत, और 11 मई को अचानक जल छोड़ने की गतिविधि दिखाई देती है। किशनगंगा डैम के गेट 29 अप्रैल को पूरी तरह खुले, लेकिन 21 मई तक केवल एक गेट खुला रहा, और अंततः बंद कर दिया गया।
पाकिस्तान अतीत में इन फ्लशिंग ऑपरेशनों का विरोध करता रहा है, क्योंकि इससे तलछट के कारण सिंचाई नहरों के बंद होने की आशंका बनी रहती है।
इस बीच, पाकिस्तान ने भारत को पत्र लिखकर IWT पर फिर से बातचीत की इच्छा जताई है, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा है कि जब तक पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को स्थायी रूप से समाप्त नहीं करता, तब तक संधि पर पुनर्विचार नहीं होगा।
भारत की दीर्घकालिक योजना में चार नए पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना, तुलबुल परियोजना का पुनर्जीवन, वुलर झील और झेलम नदी का विकास, लिफ्ट सिंचाई परियोजनाएं, और जम्मू के लिए रणबीर व प्रताप नहरों का अधिकतम उपयोग शामिल हैं।
