छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि लघु दंड (माइनर पेनल्टी) किसी कर्मचारी की पदोन्नति के अवसरों को अनावश्यक रूप से बाधित नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकल पीठ ने इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को उनके अधिकार की पुष्टि की।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि लघु दंड अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत किया जाए। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता को 21 जनवरी 2016 से इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत किया जाना चाहिए, जब उनके कनिष्ठों को पदोन्नति दी गई थी।
यह याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने मंडामस के तहत निर्देश की मांग की थी कि उन्हें इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नति दी जाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की पदोन्नति को “काल्पनिक पदोन्नति” (Notional Promotion) के रूप में माना जाए और अन्य सभी संबंधित लाभ प्रदान किए जाएं, बशर्ते अन्य पात्रता शर्तें पूरी हों।
इस निर्णय ने यह सिद्धांत स्थापित किया है कि लघु दंड की अवधि समाप्त होने के बाद भी पदोन्नति को रोकना अनुचित है। यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है और पदोन्नति में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।