अंशु मलिक का बयान, कहा- हमें ओलंपिक से पहले मानसिक शांति की जरूरत

 पेरिस ओलंपिक की कोटा विजेता महिला पहलवानों ने शुक्रवार को राष्ट्रीय महासंघ से चयन ट्रायल आयोजित नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा कि अब से वे जो भी कदम उठाएंगें और जो कुछ भी करेंगे उसका असर ओलंपिक में भारत की पदक संभावनाओं पर पड़ेगा।
सीनियर विश्व चैंपियनशिप 2021 के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली महिला पहलवान अंशु मलिक ने कहा कि खेलों की तैयारी के लिए अब उन्हें केवल ‘मानसिक शांति’ की जरूरत है।

अंशु को अगर पेरिस जाने का मौका मिलता है तो यह इन खेलों में इस 22 साल की खिलाड़ी के लिए यह दूसरा मौका होगा। उन्होंने पिछले ओलंपिक में 17 साल की उम्र में महिलाओं के 57 किग्रा वर्ग में कोटा हासिल करके आश्चर्यचकित किया था, लेकिन बड़े स्तर के अनुभव की कमी के कारण वह पहले दौर में ही बाहर हो गई थी।
तोक्यो ओलंपिक के बाद हालांकि इस आक्रामक पहलवान ने अपने खेल में काफी सुधार किया। उन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में ऐतिहासिक विश्व रजत जीतने के बाद एशियाई चैंपियनशिप में चार पदक जीते हैं।

वह पिछले साल एशियाई चैंपियनशिप के दौरान लगी घुटने में चोट के कारण एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाई थीं। अंशु को डर है कि खेलों के इतने करीब उनके शरीर पर दबाव डालने से उनकी तैयारी प्रभावित हो सकती है।
तोक्यो में अभ्यास कर रही अंशु ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें अपने हर छोटे से छोटे काम में बहुत, बहुत सावधान रहना होगा। हम यहां से अपने हर एक कदम में सतर्कता बरत रहे हैं। मैंने हाल ही में कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया है, अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं, राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं, ट्रायल्स और फिर क्वालीफायर, इसलिए मुझे ट्रायल के माध्यम से फिटनेस का आकलन करने की आवश्यकता नहीं है।’’

 उन्होंने कहा, ‘‘ओलंपिक से पहले हमें मानसिक शांति की जरूरत है। पहले से ही दो महीने तैयारी के लिए बहुत कम समय है। इस स्तर पर, हर एक दिन मायने रखता है। हम साप्ताहिक आधार पर अपने प्रशिक्षण की योजना बनाते हैं और अगर मुझे ट्रायल के लिए भारत बुलाया जाता है, तो हमारी योजनाएं प्रभावित होंगी और इसका असर पदक की संभावनाओं पर पड़ेगा।’’
अंशु ने कहा, ‘‘मैं 10 जून से एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर के लिए यूरोप भी जाना चाहती हूं, लेकिन ट्रायल को लेकर अनिश्चितता के कारण मैं इसे अंतिम रूप नहीं पा रही हूं। हमें प्रतिद्वंद्वियों के साथ मुकाबलों की रणनीति बनाने की जरूरत है, लेकिन अगर मैं ट्रायल के लिए तैयारी करती हूं तो मैं ओलंपिक की तैयारी कैसे करुंगी?’’

भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने ट्रायल मानदंड तय करने के लिए 21 मई को दिल्ली में अपनी चयन समिति की बैठक बुलाई है।
निशा दहिया (68 किग्रा) और रीतिका हुडा (76 किग्रा) उन पांच महिला पहलवानों में शामिल हैं, जिन्होंने भारत के लिए कोटा हासिल किया है।
रोहतक में सत्यवान के अखाड़े में प्रशिक्षण लेने वाली निशा ने कहा,‘‘ मैं अभी भी क्वालीफायर में वजन-कटौती से उबर रही हूं, अगर हम फिर से ट्रायल से गुजरते हैं, तो यह हमारे शरीर पर असर डालेगा। हमें दिग्गज पहलवानों से भिड़ना है और उसके लिए कारगर योजना बनाने की जरूरत है, लेकिन अगर ट्रायल के बारे में सोचते रहेंगे, तो हम आगे की रणनीति कैसे बनाएंगे।’’

निशा ने कहा, ‘‘बिश्केक में, मैं क्रॉसिंग (नॉर्डिक प्रणाली) में फंस गयी थी और मुझे पर्याप्त अंक नहीं मिले और जिस पहलवान को मैंने हराया था वह क्वालीफाई हो गयी है। मुझे पूरा यकीन था कि मैं इस्तांबुल में क्वालीफाई कर लूंगी। मैं कई वर्षों से 68 किग्रा में प्रतिस्पर्धा कर रही हूं, इसलिए मुझे पता था कि मेरे प्रतिद्वंद्वी कौन हो सकते हैं और मैंने लगभग 20-22 प्रतिद्वंद्वियों की सूची तैयार की है जिनसे मेरी भिड़ंत होने की संभावना है और मैंने उनके मुकाबले देखना शुरू कर दिया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं इस्तांबुल से सीधे यहां अपने प्रशिक्षण केंद्र आयी हूं। मैं समय और एकाग्रता बर्बाद नहीं करना चाहती थी, इसलिए यहां आते ही अभ्यास करने लगी हूं। मैंने अपने माता-पिता को भी यहां आने की अनुमति नहीं दी। अब हम ओलंपिक के बाद ही मिलेंगे।’’

पहले जारी किये गये मानदंडों के अनुसार, यह कहा गया था कि अंतिम ट्रायल में शीर्ष चार में रहने वाले पहलवान एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करेंगे और इस समूह का विजेता कोटा विजेता के साथ भिड़ेगा।
रीतिका का नैसर्गिक वजन 81 किग्रा है और अंडर 23 वर्ग में देश की पहली विश्व चैम्पियन  ने कहा, ‘‘हमें वजन कम करने में हमें लगभग सात दिन लगते हैं और प्रतियोगिता के बाद ठीक होने में लगभग इतना ही समय लगता है। अगर मुझे प्रक्रिया फिर से शुरू करनी है, तो यह एक बड़ी चुनौती है। हमें ट्रायल से छूट मिलनी चाहिये।


रोहतक में कोच मंदीप की देखरेख में अभ्यास करने वाली इस पहलवान ने कहा, ‘‘मुझे अच्छे प्रदर्शन का पूरा भरोसा है, हालांकि अमेरिका के जिस पहलवान को मैंने अंडर-23 विश्व फाइनल में हराया था, वह भी मजबूत है। मेरा आक्रमण काफी अच्छा है और रक्षा थोड़ी कमजोर है। अगर मैं अपना आक्रामक खेल जारी रख सकी तो मैं पेरिस में पदक जीत सकती हूं।’’
विशेषज्ञों का मानना है कि कोटा विजेताओं को ट्रायल के लिए बुलाने से चोटिल होने का खतरा होगा।
एक कोच ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, ‘‘इस स्तर पर, जब सब कुछ दांव पर होगा, पहलवान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। इससे कुछ कठिन मुकाबले हो सकते हैं और चोटें लग सकती हैं। इस स्थिति से बचना चाहिए।