राष्ट्रीयता के आधार पर मां-बच्चे को अलग किया जाना उचित नहीं, बंबई हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रति जताई नाराजगी

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक रूसी महिला की उस याचिका से निपटने में केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर की जिसमें उसने अपने भारतीय पति से तलाक लेने के बाद देश छोड़ने के लिए जारी एग्जिट परमिट को चुनौती दी है। महिला ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसने एक अन्य भारतीय व्यक्ति से दूसरी शादी कर ली है और उसके साथ उसकी छह महीने की एक बेटी भी है। महिला का पहले से शादी से एक नाबालिग बेटा है।

न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने सोमवार को कहा कि एक महिला, जो अभी भी अपने शिशु को स्तनपान करा रही है, उसे उसकी राष्ट्रीयता के कारण अलग नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अधिकारियों को विशेष परिस्थितियों पर विचार करते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था।

पीठ ने यह भी कहा कि शासन का यह विचार की सभी नागरिकों को संदिग्ध माना जाए, उचित नहीं है। बस सही, समझदार बनें, और महिला और उसके बच्चे के लिए एक मानवीय दृष्टिकोण रखें। राष्ट्रीयताओं को इसके रास्ते में न आने दें। हम एक मिनट के लिए भी अलग नहीं होने देंगे। अगर यह मां के लिए विशेष परिस्थिति नहीं है तो (आपकी दलील में) कुछ भी नहीं है।

स्थानीय पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर जनवरी 2023 में महिला (38 वर्षीय) को एग्जिट परमिट जारी किया था। उन्हें मार्च तक देश छोड़ने के लिए कहा गया था। इसके बाद महिला ने उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसने एग्जिट परमिट की समय अवधि बढ़ा दी थी। महिला की पहली शादी एक भारतीय नागरिक से हुई थी और उसने एक्स1 वीजा और ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड हासिल किया था। बाद में, दंपति अलग हो गए और महिला ने तलाक की कार्यवाही के लिए सहमति व्यक्त की। इस शादी से उन्हें एक बेटा हुआ।
तलाक के बाद महिला के साथ उसका शिशु है। महिला ने दूसरे भारतीय के साथ शादी की है। उन्होंने अपनी दूसरी शादी के आधार पर ओसीआई दर्जा जारी रखने के लिए आवेदन किया था। याचिका पर सुनवाई लंबित रहने तक महिला ने पुलिस को एग्जिट परमिट की अवधि बढ़ाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। 

सोमवार को केंद्र की ओर से पेश वकील रुई रोड्रिग्स ने अदालत को बताया कि लागू आदेश वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार था और उन विशेष परिस्थितियों को दिखाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं जिनके द्वारा महिला नागरिकता के लिए आवेदन कर सकती है। हालांकि, पीठ ने ध्यान दिया कि तलाक लेने और दूसरी शादी करने बाद वह अपना ओसीआई दर्जा जारी रखने के लिए नहीं कह रही है।

अदालत ने कहा, क्या कोई भी सरकार अपने ही नागरिकों के साथ इसलिए ऐसा व्यवहार करेगी और उन्हें दंडित करने का फैसला करेगी कि उन्होंने विदेशी मूल या विदेशी व्यक्ति से शादी की है? ऐसा लगता है कि जैसे सरकार कह रही है कि आप किसी विदेशी से शादी करने की हिम्मत नहीं कर सकते। हम इस तथ्य से खुद की अंधा नहीं कर सकते कि हमारे सामने छह महीने के बच्चे के साथ एक मां है। हम आपको इस परिवार को बर्बाद नहीं करने देंगे। 

अदालत ने केंद्र के वकील से कहा, आप कह रहे हैं कि उसकी (महिला) ओसीआई उनकी पहली शादी में थी और इसलिए यह जारी नहीं रह सकता। आपके नियमों को समझना हमारे लिए मुश्किल है। आप एक भारतीय नागरिक (व्यक्ति) और उसकी बेटी को भी सजा दे रहे हैं। हम संतुलन बनाने के लिए याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के हित में कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं। हम इस कार्रवाई को असंगत पाते हैं। शासन के बारे में आपका यह विचार कि सभी नागरिक संदिग्ध हैं, हमें अच्छा नहीं लगता है।
पीठ ने याचिकाकर्ता को पूर्व में दी गई अंतरिम राहत को जारी रखते हुए केंद्र से अतिरिक्त हलफनामा मांगा है और मामले की अगली सुनवाई के लिए 21 अगस्त की तारीख तय की है।