आचार्य विजयराज ने कहा है कि महान विभूतियों में कई सद्गुण व विशेषताएं होती हैं लेकिन उन गुणों और विशेषताओं को एक शब्द में परिभाषित करें तो वह आत्मीयता ही है।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। ऋषभ नगर में चार्तुमास पर जारी प्रवचन श्रखंला को संबोधित करते हुए आचार्य विजयराज महाराज ने कहा कि आत्मीयता की नींव पर ही संबंधों की इमारत खड़ी होती है, फिर चाहे बात घर, समाज व परिवार की हो अथवा बात ईश्वर से संबंध बनाने की। आचार्य प्रवर ने बताया कि महान विभूतियों और संतो के भीतर आत्मीयता का भाव लबालब भरा होता है। वे इसी विशेष गुण से महान बनते हैं। नानू कंवर व आनंद ऋषि की जन्म जंयती पर उनकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा वे दोनों महान विभूतियों की भीतर आत्मीयता विद्यमान थी। वे सब पर समदृष्टि रखते थे। फिर चाहे उनके समक्ष आने वाला जैन धर्मावलंबी हो अथवा अन्य कोई वे सभी से समभाव से मिलते थे।
आचार्य ने आगे बताया कि महान विभूतियों में दो प्रकार के व्यक्तित्व विद्यमान होते हैं। प्रथम बाह्य व्यक्तित्व और दूसरा आंतरिक व्यक्तित्व । आपने कहा बाह्य व्यक्तित्व उनकी पुण्यायी से प्रारब्ध के साथ ही आता है, जबकि आंतरिक व्यक्तित्व का निर्माण पुरुषार्थ से होता है। दोनों व्यक्तित्व के युति से ही महान व्यक्तित्व का निर्माण होता है। पूर्व में पुण्यार्जन किया उनका व्यक्तित्व नयनाभिराम होता है और जिन्होंने पुरुषार्थ से अर्जित किया उनका मनोभिराम (आंतरिक) व्यक्तित्व होता है। किसी महान विभूति के व्यक्तित्व को शब्दों में बांध नहीं सकते वह तो आसीम होता है लेकिन व्यक्तित्व में आत्मीयता एक ऐसा शब्द है जिससे व्यक्तित्व को परिभाषित किया जा सकता है। आचार्य ने श्रावक-श्राविकाओं से आह्वान किया कि वे अपने भीतर आत्मीयता का गुण विकसित करें इससे महापुरुष तो नहीं बन सकते लेकिन उनके आदर्शों व उनके बताये मार्ग पर आचरण करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है। उन्होंने कहा व्यक्ति कितना भी महान हो, ज्ञानी-ध्यानी हो या तपस्वी हो जब तक आत्मीयता भीतर नहीं होगी अन्य सारे गुण निर्मूल व निरर्थक होंगे।