उगादी 2025: दक्षिण भारत में नववर्ष का उत्सव, जानें इसकी परंपराएं और महत्व

हैदराबाद/बेंगलुरु: दक्षिण भारत में प्रमुख त्योहारों में से एक उगादी जिसे संवत्सराड़ी भी कहा जाता है, इस साल हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में इसे नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चंद्र-सौर पंचांग के अनुसार चैत्र मास के पहले दिन पड़ता है और वसंत ऋतु के आगमन के साथ नए सृजन और नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी परंपराएं

इन राज्यों में उगादी की शुरुआत अभ्यंग स्नान (तेल से मालिश कर स्नान) से होती है। इसके बाद लोग नए वस्त्र धारण करते हैं और अपने घरों को आम के पत्तों और रंगोली से सजाते हैं। इस दिन मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की जाती है और नववर्ष की मंगलकामना की जाती है।

त्योहार का सबसे खास पकवान है उगादी पचड़ी, जिसे छह अलग-अलग स्वादों से बनाया जाता है। इसमें कड़वाहट के लिए नीम, मिठास के लिए गुड़, खट्टेपन के लिए कच्चा आम, तीखापन के लिए मिर्च, खारापन के लिए नमक और खट्टास के लिए इमली मिलाई जाती है। यह जीवन के विभिन्न रंगों और अनुभवों का प्रतीक माना जाता है।

इस दिन एक अन्य महत्वपूर्ण परंपरा है पंचांग श्रवणम्, जिसमें मंदिरों में पुजारी या ज्योतिषी पूरे वर्ष के भविष्यफल की घोषणा करते हैं।

कर्नाटक में उगादी उत्सव

कर्नाटक में भी उगादी को पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। लोग अपने घरों की साफ-सफाई कर उन्हें फूलों, आम के पत्तों और रंगोलियों से सजाते हैं। यहां बेवु-बेला नामक प्रसाद का विशेष महत्व है, जिसे नीम के फूल और गुड़ से बनाया जाता है और यह जीवन के कड़वे-मीठे अनुभवों का प्रतीक होता है।

इस दिन लोग मंदिरों में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। पारंपरिक व्यंजनों में होलिगे (ओब्बट्टू), कोसंबरी और आम की चटनी बनाई जाती है।

उगादी का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

उगादी केवल नववर्ष का उत्सव नहीं बल्कि आभार, आत्ममंथन और खुशी मनाने का पर्व भी है। यह हमें पुरानी बातों को भूलकर, भविष्य की ओर सकारात्मकता और आशा के साथ बढ़ने की प्रेरणा देता है। परिवारों का एकजुट होना, परंपराओं का पालन करना और खुशियां बांटना इस पर्व को और विशेष बना देता है।

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