अपचारी बालकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने बाल संप्रेक्षण गृह में लगाया गया विपश्यना साधना शिविर

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे के निर्देशानुसार महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम के तहत संचालित बाल संप्रेक्षण गृह/ प्लेस ऑफ सेफ्टी/ विशेष गृह दुर्ग जिले में निवासरत बालकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने व उनमें सुधार के लिए विपश्यना साधना शिविर का आयोजन किया गया। शिविर जिला कार्यक्रम अधिकारी विपिन जैन द्वारा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रज्ञा मेश्राम  के सहयोग से विपश्यना साधना केंद्र थनौद  के आचार्य के माध्यम से साधना कार्यक्रम 29 जून से 15 दिवसों हेतु आरंभ कराया गया था। 15 दिवसों में पूर्व में किशोरों ने मनो परिवर्तन व सुधार देखने को मिला जिस कारण कार्यक्रम को जिला कार्यक्रम अधिकारी व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक द्वारा पुनः 25 जुलाई से 1 अगस्त तक आरंभ कराया गया। इस साधना कार्यक्रम  में इन सात दिवसों में किशोरों को अलग-अलग तरीके से समय सारणी अनुसार साधना कराया गया।  इस अवधि में किशोरों को नियमित रूप से प्रातः भजन/रतन /जय मंगल कराया गया तत्पश्चात प्रतिदिन सुबह नाश्ता दिया गया। सुबह नाश्ता एवं विश्राम पश्चात सामूहिक साधना कराया गया, इसके  बाद बच्चों से परामर्श/चर्चा किया गया। चर्चा उपरांत प्रवचन का आयोजन किया जाता रहा। प्रवचन पश्चात बच्चों के साथ प्रश्नोत्तरी किया गया। प्रश्नोत्तरी में बच्चों द्वारा साधना व ज्ञान के संबंध में विभिन्न प्रश्न व उत्तर किए गए जिसका जवाब आचार्यों  द्वारा दिया गया। उक्त कार्यक्रम पश्चात बच्चों को भोजन एवं विश्राम प्रदाय किया गया। आराम पश्चात किशोरों को पुनः ध्यान साधना सजगतापूर्वक चर्चा एवं आर्य मौन धारण करना सिखाया गया। विपश्यना साधना कार्यक्रम में एक साधना हेतु एक कालखण्ड  निर्धारित किया गया। प्रत्येक दिवस प्रत्येक कालखंड के पश्चात किशोरों को लघु आराम दिया गया। विपश्यना साधना के समय सभी बच्चों को मौन धारण कराया गया जिसमें आपस में  एक दूसरे से बात करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया। प्रत्येक साधना कार्यक्रम के पश्चात अच्छा आचार्यों द्वारा चर्चा/ परामर्श/प्रश्नोत्तरी किया गया जिससे बच्चों में ज्ञान का विकास हो और मनः परिवर्तन किया जा सके। विपश्यना साधना पश्चात किशोरों में शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन देखने को मिला। किशोरों द्वारा साधना पश्चात अपने आप को सुधार किए जाने व किए गए अपराध पर पश्चाताप करते हुए आपराधिक प्रवृत्ति से दूर रहने का आश्वासन दिया गया।