मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान, एक साल में 77 हजार बच्चे कुपोषण मुक्त, 98 हजार महिलाओं को मिली एनीमिया से मुक्ति

रायपुर (छत्तीसगढ़)। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्टूबर 2019 से छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान से एक साल में ही लगभग 77 हजार बच्चे कुपोषण से बाहर आ गए हैं। वजन त्यौहार से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार योजना के शुरू होने के समय प्रदेश में लगभग 4 लाख 92 हजार बच्चे कुपोषित थे, इनमें से 77 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण से मुक्त हो गए हैं। इस तरह कुपोषित बच्चों की संख्या में लगभग 15.64 प्रतिशत की कमी आई है। इसी तरह 15 से 49 आयु वर्ग की 98 हजार 221 महिलाओं को एनीमिया से मुक्ति दिलाने में सफलता हासिल हुई है।
वजन त्यौहार 2019 मेें 27 जिलों के 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों के वजन से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि विगत वर्ष 2018 में राज्य में कुपोषण का प्रतिशत 26.33 था, जो कि वर्ष 2019 में घटकर 23.37 प्रतिशत हो गया। इस प्रकार छत्तीसगढ़ ने एक वर्ष में कुपोषण की दर में 2.96 प्रतिशत की कमी लानेे में सफलता पायी है। कोरोना संक्रमण के कारण फरवरी 2020 में होने वाला वजन त्यौहार प्रस्तावित है।   
महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंड़िया ने इसका श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की संवेदनशीलता और दूरदर्शी सोच को देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बघेल के कुपोषण दूर करने के दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयासों से कुपोषण मुक्ति के अभियान में सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। बहुत ही कम समय में ही प्रदेश में कुपोषण की दर में उल्लेखनीय कमी आई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कुशल नेतृत्व में कुपोषण मुक्ति के लिए विभागों की समन्वित कार्ययोजना के साथ स्थानीय पौष्टिक आहार को प्रमुखता, बाड़ी, किचन गार्डन को बढ़ावा और अधिक से अधिक जन समुदाय की सहभागिता जैसे कई प्रयास एक साथ कियेे।
छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया की दर को देखते हुए प्रदेश को कुपोषण और एनीमिया से मुक्त करने अभियान की शुरूआत की। राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण-4 के अनुसार प्रदेश के 5 वर्ष से कम उम्र के 37.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण और 15 से 49 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थे। इन आंकड़ों को देखे तो कुपोषित बच्चों में से अधिकांश आदिवासी और दूरस्थ वनांचल इलाकों के बच्चे थे। राज्य सरकार ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और ‘कुपोषण मुक्त छत्तीसगढ‘ की संकल्पना के साथ पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत की। अभियान को सफल बनाने के लिए इसमें जन-समुदाय का भी सहयोग लिया गया।