नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण अध्यादेश लाने के मामले में आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार इसका लगातार विरोध कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा है कि इस अध्यादेश को लाकर ऐसा लगता है कि जनता और देश के साथ एक भद्दा मजाक किया गया है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को सीधी चुनौती दे रही है कि आप कुछ भी आदेश दें हम उस पर अध्यादेश लाकर पलट देंगे। यह चुनौती है कि अगर भाजपा के अलावा किसी और पार्टी को चुनोगे तो हम उसे काम नहीं करने देंगे।
उन्होंने कहा मैं दिल्ली की जनता के बीच जाऊंगा और दिल्ली में महारैली का आयोजन करेंगे। जिस तरह से जनता की प्रतिक्रिया आ रही है उससे लग रहा है कि इस बार भाजपा को लोकसभा चुनाव में दिल्ली से एक भी सीट नहीं मिलेगी। मैं विपक्षी दलों से अपील करना चाहता हूं कि राज्यसभा में जब यह बिल आएगा तो उसे पारित न होने दें। मैं हर पार्टी के नेताओं से मिलुंगा और उनसे समर्थन मांगूंगा।
वहीं शनिवार को आप सांसद संजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने अघ्यादेश को भारत के संविधान के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक इस अघ्यादेश का विरोध करेगी। इसी के साथ उन्होंने उम्मीद जताई है कि जब यह संसद में आएगा तो पूरा विपक्ष इस अध्यादेश के खिलाफ खड़ा होगा।
संजय सिंह ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा। संविधान के बाहर जाकर कोई अघ्यादेश जारी नहीं हो सकता है। यह अध्यादेश नहीं बल्कि जनता द्वारा चुनी सरकार के खिलाफ काला कानून है।
जानिए क्या है राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवा प्राधिकरण
बता दें केंद्र सरकार ने दिल्ली के लिए अध्यादेश जारी किया है। अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन होगा। इस अध्यादेश के जरिए केंद्र ने ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल को दे दिए हैं। इस अध्यादेश के अनुसार, राजधानी में अधिकारियों का तबादला और नियुक्ति, नेशनल केपिटल सिविल सर्विसेज अथारिटी (एनसीसीएसए) के माध्यम से होगी। इसमें दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री प्राधिकरण के अध्यक्ष होंगे। बहुमत के आधार पर प्राधिकरण का फैसला होगा। यह भी बता दें कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र बनाम दिल्ली सरकार के अधिकार पर फैसला देकर निर्वाचित दिल्ली सरकार को अधिकार संपन्न होने पर मोहर लगाई थी।