नॉर्को टेस्ट से हत्या के मामले का खुलासा होने के बाद इस आधार पर सजा होने का जिले के इतिहास में यह पहला मामला है। इस वारदात में घर की बहु ने अपनी नानी सास की राड से पीटकर हत्या कर दी थी। बहु उसकी रोकटोक से नाराज थी। हत्या की वारदात पर पर्दा डालने में आरोपी महिला की मां व मामी ने सहयोग प्रदान किया था। न्यायालय ने आरोपी बहु को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास तथा उसकी मां व मामी को साक्ष्य छुपाने के आरोप में 5-5 वर्ष के कारावास से दंडि़त किए जाने का फैसला सुनाया है। यह फैसला न्यायाधीश ममता शुक्ला की अदालत में सुनाया गया। अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक सुदर्शन महलवार तथा अति. लोक अभियोजक महेन्द्र सिंह राजपूत ने पैरवी की थी। वहीं मामले का खुलासा करने में विवेचक बृजेश कुशवाहा की विशेष भूमिका रही। आरोपियों का पॉलिग्राफिक्स टेस्ट गुजरात की साइंटिफिक आफिसर एच.आर. शाह ने किया था।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। हत्या की इस वारदात को कोतवाली क्षेत्र के कुंदरापारा में 13 जून 2015 को अंजाम दिया गया था। वृद्ध सास सिलिया बाई (70 वर्ष) की रोकटोक से नाराज नातिन बहु मंजू बंजारे (23 वर्ष) ने ही उसकी राड से पीट पीटकर जान ले ली थी। जिसके बाद किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सास का हत्या करने का प्रचार किया था। घटना के समय बहु और सास घर में अकेली थी। मंजू का पति गणेश अपने बेटे के साथ पान की दुकान में था। घटना के कुछ देर बाद मृतका सिलिया बाई की बेटी तारबाई घर पहुंची और उसने अपनी मां की मौत की जानकारी पुलिस को दी। इस दरम्यान आरोपी बहु मंजू ने अपने परिवार व मोहल्ले के सदस्यों को यह बताया कि वह घर से किसी काम से बाहर गई थी। वापस लौटी तो उसकी नातिन सास लहूलुहान पड़ी थी। पुलिस ने हत्या का अपराध दर्ज कर आरोपी की खोजबीन प्रारंभ की थी।
मामले में पुलिस बहु मंजू पर गर्भवती होने के कारण अधिक संदेह नहीं कर रही थी। पुलिस को संदेह था कि बहु के अनैतिक संबंध इस हत्या का कारण हो सकते थे। पुलिस इसी दिशा में कार्य कर रही थी। वहीं मामले को सुलझाने के लिए बहु व उसके रिश्तेदारों का नॉर्को टेस्ट कराए जाने के लिए न्यायालय से अनुमति लेने का प्रयास भी किया जा रहा था। न्यायालय से अनुमति मिलने के बाद मंजू के साथ उसकी मां उत्तरा बाई (40 वर्ष), मामी सोनबाई (40 वर्ष) के कराए गए पॉलिग्राफिक टेस्ट में हत्या में उनकीं संलिप्तता उजागर हुई। लगभग दो वर्ष बाद हुए इस खुलासे के बाद पुलिस पूछताछ में मंजू ने बताया कि उसकी नानी सास सिलिया बाई उस पर संदेह करती थी और इसे लेकर वह बेइज्जत भी करती थी। जिससे नाराज होकर उसने इस वारदात को अंजाम दिया। हत्या के बाद इसकी जानकारी उसने पडौस में रह रही अपनी मां उत्तरा बाई व मामी सोन बाई को दी थी। उन्होंने हत्या किए जाने का जिक्र किसी से नही करने की सलाह देते हुए हत्या में प्रयुक्त राड़ को छुपा दिया था। आरोपियों की निशानदेही पर राड बरामद कर ली गई थी। राड़ पर दो साल बीत जाने के बाद भी मृतका सिलिया बाई के खून के सैंपल मिले। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छुपाने का अपराध पंजीबद्ध कर प्रकरण को विचारण के लिए न्यायालय के समक्ष पेश किया था।
इस प्रकरण में आरोपियों को सजा दिलाने में नॉर्को टेस्ट की अहम भूमिका रही। इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा 29 गवाह न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे। जिनमें से अधिकांश आरोपियों के रिश्तेदार थे, जिसके चलते प्राय: सभी गवाह पक्षद्रोही हो गए थे। नॉर्को टेस्ट के माध्यम से हत्या की वारदात के संबंध में अभियुक्तों से मिली जानकारी व साइंटफिक ऑफिसर एच.आर. शाह द्वारा न्यायालय समक्ष दिए गए कथन के आधार पर न्यायाधीश ममता शुक्ला ने बहु मंजू को हत्या व साक्ष्य छुपाने तथा उसकी मां उत्तराबाई व मामी सोनबाई को हत्या के साक्ष्य छुपाने का दोषी माना। मंजू को दफा 302 के तहत उम्रकैद की सजा से दंडित किया गया। वहीं उत्तराबाई व सोनबाई को दफा 201 के तहत 5-5 वर्ष के कारावास से दंडि़त किए जाने का फैसला सुनाया गया है।
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