मालगुजारी के समय अपने पूर्वजों के कब्जे वाली जमीन पर मालिकाना हक जताए जाने के मामले को अदालत ने खारिज कर दिया है। अपील पक्ष इस मामले में राजस्व न्यायालय के समक्ष पूर्वजों के इस जमीन पर कब्जा होना और उसका मालिक होना साबित करने में असफल रहा। राजस्व न्यायालय के न्यायाधीश विवेक तिवारी ने अपील को खारिज करते हुए जमीन को शासकीय जमीन करार दिया है। मामले में शासन की ओर से लोक अभियोजक सुदर्शन महलवार ने पैरवी की थी।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। जमीन का यह विवाद धमधा तहसील के ग्राम मोहरेंगा है। यहां की पटवारी हल्का नंबर 8, खसरा नंबर 1118 की 11.920 हेक्टर जमीन पर शोभाराम परगनिहा व उनके पुत्र दयाशंकर परगनिहा द्वारा अपना मालिकाना हक बताया जा रहा है। उनका दावा है कि उनके पूर्व नीलकंठ यहां के मालगुजार थे और इस जमीन पर उनका कब्जा था। इसके चलते उन्होंने इस जमीन पर अपना मालिकाना हक जाहिर किया है। उन्होंने न्यायालय को बताया कि पूर्व में इस भूखंड का शासन का हस्तांतरण किए जाने की जानकारी नहीं थी। 2 नवंबर 2010 को खनिज विभाग द्वारा इस भूखंड की खदान को लीज पर देने के लिए मुनादी कराई, जिसके बाद उन्हें जमीन के शासन को हस्तांतरित किए जाने और खनिज शाखा की मिल्कियत होने की जानकारी मिली।
बताई पुश्तैनी जमीन, पर नहीं कर पाए साबित
पिता पुत्र ने इस भूखंड को अपनी पुश्तैनी जमीन बताते हुए एसडीएम कोर्ट में आपत्ति दाखिल की थी। एसडीएम कोर्ट ने जांच के बाद 21 जून 2012 को इस आपत्ति को अमान्य कर दिया था। जिसके बाद सिविल न्यायालय में दीवानी प्रकरण दाखिल किया गया। जिस पर विचारण के बाद न्यायाधीश गिरिश मंडावी की अदालत में इस दावे को 3 अगस्त 2018 को खारिज कर दिया। इस फैसले को चुनौति देते हुए राजस्व न्यायालय में अपील की गई थी। इस अपील पर राजस्व न्यायालय के न्यायाधीश विवेकर शुक्ला की अदालत में सुनवाई की गई। सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता विवादित भूखंड पर अपना कब्जा होना साबित नहीं कर पाए। भूखंड पर पूर्वजों के नाम पर शासकीय अभिलेख में दर्ज होने संबंधित दस्तावेंज भी न्यायालय के समक्ष पेश नहीं कर पाए। जिसके बाद न्यायाधीश विवेक तिवारी ने निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को यथावत रखते हुए, भूखंड पर मालिकाना हक के लिए दाखिल अपील को खारिज कर दिया है।