नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें एनजीटी ने अगले छह महीने में बीएस-4 इंजन वाले सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का आदेश दिया था। एनजीटी के इस आदेश पर पश्चिम बंगाल सरकार ने अपील दायर की थी। मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने मामले में पक्षकारों को नोटिस जारी किया। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर अपील पर उनका जवाब मांगा।
बता दें कि एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छह महीने में बीएस-IV और उससे कम इंजन वाले सार्वजनिक परिवहन वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाए। ताकि उसके बाद कोलकाता और हावड़ा सहित राज्य में केवल बीएस-VI वाहन ही चल सकें।
पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के वकील का कहना है कि 24 अक्टूबर, 2018 के आदेश में इस अदालत के निर्देशों के अनुसार, उत्सर्जन मानक भारत स्टेज- IV के अनुरूप कोई मोटर वाहन बेचा या पंजीकृत नहीं किया जाना था। यह 1 अप्रैल, 2020 से देश में प्रभावी हो गया था। इस प्रकार, अनुमति के अनुसार वाहनों के पंजीकरण उस तिथि तक किए गए थे, और इसलिए 15 साल की अवधि को पंजीकरण की तारीख से गिना जाना चाहिए। अगर ये नहीं किया जाएगा को यह 15 साल से कम समय में वाहनों को बेकार बनाने का कारण होगा। पीठ ने आगे कहा कि ऐसे में एनजीटी को नोटिस जारी की जाए साथ ही एनजीटी के निर्देश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी जाती है।
मामले में एनजीटी की पूर्वी पीठ ने कहा था कि कोलकाता और हावड़ा में बड़ी संख्या में 15 साल से पुराने निजी और वाणिज्यिक वाहन चल रहे हैं। उन वाहनों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के साथ ही कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) बसों और इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत की जा सकती है। इसके साथ स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकी के उपयोग की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है।