जेल की सलाखों के पीछे भी गढ़ा जा रहा बच्चों का बेहतर भविष्य

जेल में निरुद्ध महिला कैदियों के बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे है। दुर्ग सेंट्रल जेल में सलाखों के पीछे अपनी माताओं के साथ रह रहे नौनिहालों के उज्जवल भविष्य की इबारत लिखी जा रहीं। इन बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने झूलाघर के अलावा इंग्लिश मीडियम के स्कूल में दाखिला कराया गया है।

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। सेंट्रल जेल की सलाखों के पीछे 8 बच्चे अपनी माताओं के साथ हैं। इनमें से 3 साल से कम उम्र के 6 बच्चें झूलाघर जाते हैं। झूलाघर का संचालन महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा कराया जा रहा है। 3 से 6 वर्ष आयु के दो बच्चे का एडमिशन खालसा इंटरनेशनल स्कूल में कराया गया है। अभी ये बच्चे नर्सरी और केजी 1 में पढ़ रहे हैं। हर दिन दूसरे बच्चों की तरह वे यूनिफार्म में स्कूल जाते हैं। स्कूल में ककहरा सीखते हैं। जेल अधीक्षक योगेश सिंह क्षत्री ने बताया कि दो बच्चों का एडमिशन खालसा इंटरनेशनल स्कूल में कराया गया है। जेल मैन्यूअल के अनुसार महिला बंदी अपने छह साल तक के बच्चों को अपने साथ जेल में रख सकती हैं। वर्तमान में सेंट्रल जेल में दंडित और विचाराधीन कुल 139 महिला बंदी हैं। इनमें कुछ अपने बच्चों को साथ रखती हैं। जेल प्रशासन की प्राथमिकता में हैं कि इन बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। किताबें मिले। यूनिफार्म मिले और अच्छी पढ़ाई के लिए हर वो चीज जो दी जा सकती है इन बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही है। इसके साथ ही समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण भी इन बच्चों का कराया जाता है। उन्होंने बताया कि सेंट्रल जेल के निरीक्षण के दौरान कलेक्टर अंकित आनंद ने भी महिला कैदियों के बच्चों की शिक्षा पर विशेष फोकस रखने के निर्देश दिये थे। जेल परिसर में इन बच्चों के खेलने के लिए छोटा सा बालोद्यान भी बनाया गया है ताकि बच्चों का मनोरंजन होता रहे।