टीबी चैंपियन का कमालः देसी जुगाड़ से निर्मित मिट्टी का चूल्हा टीबी रोग पर नियंत्रण के लिए है काफी मददगार
दुर्ग। टीबी रोग की चपेट में कोई न आए, यह उद्देश्य लेकर जिले के धमधा विकासखंड में अनूठा प्रयोग किया जा रहा है। यहां देसी जुगाड़ से मिट्टी का ऐसा चूल्हा बनाया गया है जिससे घर के अंदर धुआं नहीं फैलता। वहीं पूरा खाना एक साथ तैयार किया जा सकता है जिससे लकड़ी की खपत भी काफी कम होती है। यही इस चूल्हे की सबसे बड़ी विशेषता है। धुआंरहित चूल्हा होने की वजह से ही टीबी जैसी गंभीर बीमारी को पनपने से काफी हद तक रोका जा सकता है।
इस अनूठे चूल्हे को घर-घर पहुंचाने के लिए टीबी चैंपियंस के माध्यम से दुर्ग जिले में जोर-शोर से प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें मितानिन भी अहम भूमिका निभा रही हैं। यह चूल्हा कई मायनों में सबसे अलग और विशेष है, जिसे धुएं अथवा टीबी रोग से बचाव हेतु एहतियाती सुरक्षा के लिए कोई भी अपने घर लगवा सकता है, वह भी निःशुल्क।
धुआंरहित अनूठे चूल्हे का जिक्र करते हुए जामुल निवासी तथा धमधा विकासखंड क्षेत्र में कार्यरत टीबी चैंपियन लालेंद्र साहू ने बतायाः डीटीओ डॉ. अनिल शुक्ला के नेतृत्व में टीबी रोग से बचाव के लिए कुछ अलग करने की इच्छाशक्ति के साथ प्रयास शुरू किया गया था। यू-ट्यूब देखकर धुआंरहित चूल्हा बनाने का प्रयास किया गया जिसका परिणाम अब धुआंरहित (स्मोकलेस) चूल्हा के रूप में हम सबके सामने है। यह चूल्हा खाना बनाते समय धुएं से निजात दिलाता है। धुआंरहित इस चूल्हे को मितानिन के हाथों तैयार किया जाता है जिसमें एक पाइप लगाया जाता है जिससे धुआं घर में नहीं फैलता और पाइप के माध्यम से ही धुआं घर से बाहर निकल जाता है। जिस घर में टीबी के संदिग्ध मरीज हैं, वहां पर यह चूल्हा निःशुल्क लगाया जाता है। इसके अलावा सामान्य घरों के लिए भी यह चूल्हा बहुत उपयोगी है क्योंकि चूल्हे से धुआं नहीं फैलने के कारण टीबी रोग होने के खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है।
इस संबंध में दुर्ग जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ. अनिल शुक्ला ने बतायाः कलेक्टर डॉ. सर्वेश्नर नरेंद्र भुरे और सीएमएचओ डॉ. जेपी मेश्राम के मार्गदर्शन में टीबी रोग पर नियंत्रण के लिए जिले में हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में टीबी चैंपियंस को विशेषकर टीबी रोग से बचाव की दिशा में कुछ नया और अनूठा प्रयोग करने का टास्क दिया गया था, ताकि लोगों को टीबी रोग होने से बचाया जा सके। इसका सुखद परिणाम अब धुआंरहित चूल्हे के रूप में सामने आया है। धुआंरहित चूल्हा हर घर के लिए उपयोगी है, इसलिए व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुए यह चूल्हा लोगों के घरों में निशुल्क लगाया जाता है। इस चूल्हे को कोई भी अपने घर लगवा सकता है।
धुआंरहित चूल्हे की मांग बढ़ने से उत्साहित मितानिन लोकेश्वरी साहू ने बतायाः मितानिन के रूप में सेवा के क्षेत्र में आने से पहले यह कभी नहीं सोचा था कि जनसेवा के लिए इतना भी ज्यादा सुनहरा अवसर मिलेगा। सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि हमें टीबी रोग से बचाव के लिए कार्य करने का अवसर मिला है। धुआंरहित चूल्हा स्वास्थ्य के लिए वास्तव में काफी लाभदायक है, इसीलिए यह चूल्हा दुर्ग शहर व ग्रामीण क्षेत्र के नगपुरा, धमधा, खुर्सीपार व सुपेला के 50-60 घरों में लगाया भी जा चुका है। डोर टू डोर जनसंपर्क के दौरान टीबी रोग के संदिग्ध मरीज चिन्हित होने की स्थिति में पीड़ित की सहमति से यह चूल्हा निःशुल्क लगाया जाता है।
मितानिन सोनिया कोसले ने बतायाः सामान्य तौर पर धुआं ही खांसी का मुख्य कारक माना जाता है और लगातार खांसी होने से टीबी रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए धुआं पर नियंत्रण को प्राथमिकता में रखकर यह चूल्हा तैयार किया जाता है। इस चूल्हे में एक साथ भोजन पकाने के विकल्प होने से लकड़ी की भी बहुत कम खपत होती है। वहीं पाइप लगाए जाने के कारण घर में धुआं नहीं फैलता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।