दुर्ग (छत्तीसगढ़)। केंद्र सरकार के बजट कृषि के लिए किए गए प्रावधानों पर किसानों ने निराशा जाहिर की है। किसानों का कहना है कि आमदनी की गारंटी के लिए सात महीनों से किसान दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं। किसानों के आंदोलन और उनकी मांगों को सीधे तौर पर नजरअंदाज कर दिया गया। वहीं पूर्व की घोषणा के अनुरूप किसानों की आमदनी दोगुना करने की पहल तो दूर सम्मान निधि की कटौती कर कर्ज का लक्ष्य बढ़ा दिया गया है। इस तरह किसानों के कर्जदार होकर बर्बाद होने का रास्ता खोला जा रहा है।
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के संयोजक राजकुमार गुप्ता का कहना है कि करोड़ो किसान पिछले 7 महीने से कृषि उपज के सुनिश्चित दाम और आमदनी की गारंटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सरकार ने किसानों की मांगों की उपेक्षा करके बजट में किसानों को कर्ज देने के लिए 16.5 लाख करोड़ का लक्ष्य निर्धारित किया है। जाहिर है किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होंगे और उन्हें अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ेगा। इसके अलावा आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। मोदी सरकार ने किसान सम्मान निधि के बजटीय प्रावधान में 10 हजार करोड़ रूपए यानि 13 फीसदी की कटौती कर दी है। इसी प्रकार यूरिया की सब्सिडी भी कम कर दिया है। जिसके परिणाम स्वरूप लागत मूल्य में वृद्धि होगी।
प्रगतिशील किसान संगठन के महामंत्री झबेंद्र भूषण वैष्णव का कहना है कि बजट में किसानों के लिए सिर्फ एमएसपी खरीद के आंकड़े गिनाए गए हैं। खरीद बढऩे के बाद भी 84 फीसदी उत्पाद बाजार के भरोसे है। जिसका उचित मूल्य नही मिल रहा है। इस पर बजट में कुछ भी नहीं दिया। सरकार शायद किसान आंदोलन के चलते खुद असमंजस की स्थिति में है। पेट्रोल-डीजल पर कृषि सेस लगाया गया है। जिससे कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की बात की गई है। यह क्या और कैसे होगा ये भविष्य के गर्भ में है। किसानों को आज सीधे सहायता की जरूरत है। किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य कैसे मिले इस पर बजट मौन है।