Interview: कॉन्वेंट नहीं, साक्षा संस्कृति की एक समान शिक्षा के हैं सभी पक्षधर: निशंक

कैथोलिक स्कूलों में भी शिक्षा का स्वरूप अन्य स्कूलों जैसा ही हो। एक धर्म समुदाय को ध्यान में रखकर सिर्फ कॉन्वेंट संस्कृति का न हो प्रचार-प्रसार? हालांकि ये ऐसा मुद्दा है जो आज से नहीं, बल्कि कई वर्षों से चर्चाओं में है। पर, देर आए, दुरूस्त आए, आखिरकार केंद्र सरकार ने नई गाइडलाइन जारी करके सभी कैथोलिक स्कूल को निर्देश दे ही दिया है कि वह जारी नियमों को आगामी शैक्षणिक सेशन से अपनाना शुरू करें। क्या हैं नए नियम, और किसको है दिक्कतें? ऐसे तमाम उभतरे सवालों को लेकर पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ से बातचीत कर मसले को समझा।
  
प्रश्नः कॉन्वेंट स्कूलों की शिक्षा में बदलाव की जरूरत क्यों महसूस हुई?
उत्तरः ये जनता की मांग है। कान्वेंट स्कूलों की शिक्षा और संस्कृति में बदलाव हो, वहां एक समान शिक्षा की लौ जले, ऐसी डिमांग आज से नहीं, बल्कि वर्षों से लोग उठा रहे हैं। मैं समझता हूं, इसके पक्षधर सभी को होना चाहिए। साफ करना जरूरी है कि हम किसी शिक्षा, जुबान और मजहब के खिलाफ नहीं हैं? भारत साक्षा संस्कृति से हरा-भरा निर्मित देश है। लेकिन सिर्फ एक शिक्षा और अलहदा संस्कृति से अगर कोई बांधने की कोशिश करेगा, तो मोदी युग में तो मुमकिन होगा नहीं? हमारा नारा है, ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ उसी रास्ते पर चल रहे हैं। हमारी सरकार में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता, एक समान दृष्टि से देखा जाता है सभी को। शिक्षा ही सोच में बदलाव लाती है, पर शिक्षा जाति-समुदायों में बंधी नहीं होनी चाहिए।
  
प्रश्नः सरकार के हिसाब से ईसाई स्कूलों में क्या-क्या होना चाहिए?
उत्तरः क्या होना चाहिए, इसके लिए प्रयुक्त गाइडलाइंस सभी को दे दी गई हैं। सबसे पहले तो छात्र-छात्रों और स्टाफ सदस्यों को निर्देशित किया गया है कि धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता और विविधता का एक समान प्रसार किया जाए। इसके अलावा सबसे जरूरी ये है कि प्रत्येक कॉन्वेंट स्कूलों में प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, वैज्ञानिकों, कवियों व राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरें उनकी लाइब्रेरी और लॉबी आदि जगहों पर लगाई जाएं। किसी सिंगल व्यक्ति विशेष की फोटो स्कूलों में न टांगी जाएा। प्रेरक और प्रेरणादायक व्यक्तियों की ही फोटो स्कूलों में लगाई जाए। ऐसा करने से छात्र पूर्व के कालखंड़ों से भी वंचित नहीं होंगे। इतिहास में किन-किन लोगों ने क्या-क्या किया और उनका बलिदान किन क्षेत्रों में रहा, इसकी जानकारियां छात्रों को अन्य स्कूलों की भांति मुहैया हो सकेगी।

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प्रश्नः क्या केंद्र की इस गाइडलाइंस से ‘कैथोलिक बिशप सम्मेलन’ संस्था खुश होगी?
उत्तरः इसमें खुशी और न-खुशी का सवाल ही नहीं? सरकार की नीतियों को अपनाना सबका धर्म बनता है। बेहतरीन गाइडलाइंस हैं, सभी के भले और हित के लिए हैं। इसमें किसी का अहित नहीं। धर्म के लिहाज से आप किसी छात्र पर जबरदस्ती ईसाई परंपरा या अन्य संस्कृति नहीं थोप सकते। मदरसों में भी तो गीता का पाठ पढ़ाना और संस्कृति की शिक्षा देनी आरंभ हो गई है। वहां तो कोई विरोध नहीं कर रहा। देश में जब ‘एक विधान, सबके समान’ की बात कही जा रही है, तो कॉन्वेंट स्कूलों में सिर्फ ईसाई शिक्षा क्यों? ये संभव नहीं?
प्रश्नः नए निर्देश में आस्थाओं और परंपराओं का सम्मान करने की बात कही गई है?
उत्तरः मुख्य उद्देश्य यही तो है कि कॉन्वेंट संस्कृति में सिर्फ अंग्रेजी और ईसाइयत का प्रचार-प्रसार न हो? सरकार ये नहीं कहती है कि ईसाई धर्म को न माना जाए, लेकिन उसके साथ-साथ साक्षा संस्कृति की आस्थाओं और परंपराओं की अवहेलना भी न हों, उन्हें भी सम्मान दिया जाए। केंद्र सरकार की ये नई पहल दरअसल वर्तमान समय में सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थितियों के मध्य उभरती नई किस्म की चुनौतियों’ से निपटना मात्र है। हमें इसका दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए।
प्रश्नः कब से लागू होगी ये योजना?
उत्तरः आगामी सेशन से शुरू होगी। ये गाइडलाइंस सिर्फ ईसाई स्कूलों के लिए ही नहीं है, बल्कि तमाम शैक्षणिक संस्थाओं के लिए भी है। स्थानीय एंव जाति-समुदायों की आड़ में दी जाने वाली शिक्षा और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया से जुड़े करीब 14 हजार स्कूल, 650 कॉलेज, 7 यूनिवर्सिटी, पांच मेडिकल कॉलेज और 450 तकनीकी-व्यावसायिक संस्थाओं के अलावा जितने भी ऐसे शैक्षणिक हब हैं जो अलग रास्ते पर लगते थे, उन सभी में ये नई गाइडलाइन तत्काल प्रभावे से लागू होगी। हालांकि कहीं से अभी तक विरोध के सुर उठे नहीं हैं।
प्रश्नः गाइडलाइन के बाद सीबीसीआई का एक बयान जिसमें बदलती सियासी परिस्थितियों में सतर्क और संवेदनशील रहना बताया था?
उत्तरः चुनावी मौसम में विपक्ष इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश में है। जबकि, ये मसौदा सभी के साथ रायशुमारी करके शिक्षा मंत्रालय ने तैयार करके ये ऐतिहासिक निर्णय लिया। मुझे लगता है किसी को विरोध करना नहीं चाहिए। मोदी जी का हमेशा से प्रयास रहा है कि देश के सभी बच्चों को एक जैसी शिक्षा मिले। शिक्षा का बंटना समाज के लिए अच्छा नहीं होता। 
-बातचीत में जैसा पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा