ट्विन सिटी के बहुचर्चित अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर अदालत में शनिवार को हुई सुनवाई में अभियोजन पक्ष के गवाह पुलिस निरीक्षक ने बताया है कि घटना दिनांक को दो आरोपियों व मृतक के मोबाइल लोकेशन साथ साथ थे। इसके अलावा तीन बार समान टावर लोकेशन भी मिले है। प्रकरण पर विचारण जिला सत्र न्यायाधीश जी.के. मिश्रा की अदालत में विचाराधीन है। इस गवाही के प्रति परीक्षण के साथ ही प्रकरण से संबंधित सभी गवाहों की गवाही प्रक्रिया पूर्ण हो गई है। प्रकरण की अगली सुनवाई तिथि 8 नवंबर निर्धारित की गई है। जिसमें अभियुक्तों का कथन दर्ज किया जाएगा।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। भिलाई की शंकरा एज्यूकेशन सोसायटी के डायरेटक्टर अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर शनिवार को अदालत में सुनवाई हुई। सुनवाई में अभियोजन पक्ष के गवाह पुलिस निरीक्षक नरेश पटेल की गवाही का प्रतिपरीक्षण बचाव पक्ष के अधिवक्ता बी.पी. सिंह द्वारा किया गया। प्रतिपरीक्षण में गवाह नरेश पटेल ने अदालत को बताया कि घटना दिन को दुर्ग, रायपुर मार्ग जो मोबाइल टावर पडते है, उस टावर के जरिए हजारों मोबाइल से बातचीत हो रही थी, लेकिन मृतक के मोबाइल नंबर के समानांतर दूसरे मोबाइल नहीं चल रहे थे। जबकि मोबाइल नंबर 8349992333 एवं 9630518985 साथ साथ चल रहे थे। तीन बार समान टावर लोकेशन भी मिले है। इन मोबाइल का मोबाइल नंबर 9806753397 से भी संपर्क था। इस नंबर से मृतक से कई बार बातचीत हुई थी। उन्होंने यह भी बताया कि घटना दिनांक को अभियुक्त विकास जैैन व अजीत सिंह के मोबाइल से मृतक अभिषेक के मोबाइल पर बातचीत नहीं हुई थी। किम्सी के मोबाइल से बातचीत हुई थी।
उन्होंने बताया कि जिस मोबाइल नंबर 9144039634 से मृतक के पिता आई.पी. मिश्रा को 10 नवंबर 2015 को धमकी भरा फोन आया था। यह मोबाइल सिम नंबर रावणभाठा, रायपुर के शिवलाल गोयल के नाम से जारी हुआ था। इस सिम की गई कॉल की डिटेल में 1 नवंबर 2015 से 30 नवंबर 2015 तक सिर्फ दो कॉल ही की गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि इस सिम को लालपुर रायपुर के अमरेश कुमार साहिल व राकेश यादव ने बेचा था। उन्होंने बताया कि विडियोकॉन, आईडिया व एयरटेल कंपनी के 7 मोबाइल नंबरों का सीडीआर उन्हें जांच के लिए सौंपा गया था।
बचाव पक्ष के सवाल का जवाब देते हुए गवाह नरेश पटेल ने बताया कि अभियुक्त अजीत सिंह की गिरफ्तारी 23 दिसंबर 2015 को की गई थी। उसकी पहचान की कार्रवाई 15 फरवरी 2016 को करवाई गई। उन्होंने इस सवाल को गलत बताया कि पहचान प्रक्रिया से पूर्व सूरज व गोपाल को अजीत सिंह को दिखा दिया गया था, फिर पहचान की औपचारिकता की गई। उन्होंने स्वीकार किया गया कि गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त का प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मिडिया में समाचार आया था। उन्होंने यह भी बताया कि मृतक अभिषेक की घड़ी की शिनाख्ती जब्ती के 52 दिन बाद कराई गई थी। प्रकरण में गवाह सुनीता अग्रवाल का बयान 14 माह बाद लिए जाने संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि वह पूर्व पते में नहीं रहती थी, इसलिए उनका बयान लेने में विलंब हुआ।
अदालत ने दी हिदायत
प्रकरण के अभियुक्त अजीत सिंग की गिरफ्तारी के बाद पहचान कार्रवाई में हुए विलंब के संबंध में बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा सवाल किया गया था। जिस पर आपत्ति करते हुए शासकीय अधिवक्ता ने इस सवाल को गलत बताया। जिस पर अदालत ने उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि बचाव पक्ष के प्रश्न व गवाह के उत्तर देने के पूर्व किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। पहले बचाव पक्ष के सवाल का गवाह द्वारा दिया गया उत्तर पहले सुन लें, फिर आपत्ति करें अन्यथा गवाह जवाब देने के पूर्व सतर्क हो जाता है।