नई दिल्ली। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक ने एक लेख में भारत के लिए नवउदारवादी नीतियों की विफलता को उजागर करते हुए विकास के वैकल्पिक मॉडल की जरूरत पर जोर दिया है। उनका मानना है कि वर्तमान में खाद्यान्न उत्पादन में भले ही वृद्धि हुई हो, लेकिन आम जनता की खाद्यान्न खपत और पोषण स्तर में गिरावट स्पष्ट रूप से यह दिखाता है कि विकास का लाभ गरीब और श्रमिक वर्ग तक नहीं पहुंचा है।
पटनायक के अनुसार, नवउदारवादी दौर में जीडीपी में वृद्धि के बावजूद, खाद्यान्न उपभोग में कमी आई है, जो एक विकासात्मक विडंबना को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि 1993-94 में जहां ग्रामीण भारत में 58% लोग न्यूनतम 2200 कैलोरी से कम उपभोग करते थे, वहीं 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 80% हो गया।

खाद्यान्न का अधिशेष समृद्धि नहीं, गरीबी का संकेत है, क्योंकि श्रमिक वर्ग की वास्तविक क्रय शक्ति घटती जा रही है। ऐसे में, यह अधिशेष एक संकट है, अवसर नहीं।
पटनायक का वैकल्पिक मॉडल क्या कहता है?
- नवउदारवाद के बजाय लोककल्याण आधारित कृषि-प्रेरित विकास मॉडल को अपनाया जाना चाहिए।
- विकास का मापदंड प्रति व्यक्ति जीडीपी नहीं, आवश्यक वस्तुओं का उपभोग होना चाहिए।
- खाद्यान्न सरप्लस का उपयोग रोजगार सृजन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करके किया जाना चाहिए।
- सरकारी खर्च में वृद्धि — या तो वित्तीय घाटे के जरिए या धनी वर्ग पर कर बढ़ाकर — इस संकट का समाधान है।
- भूमि सुधार और राजकीय निवेश कृषि उत्पादकता और रोजगार बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं।
- वैश्विक पूंजी के प्रभाव को सीमित करने के लिए पूंजी नियंत्रण लागू करना जरूरी है।
प्रभात पटनायक ने कहा कि यह कहना उचित नहीं होगा कि हमें पूरी तरह पुराने लोककल्याणकारी मॉडल में लौट जाना चाहिए, लेकिन उसके सिद्धांतों से प्रेरणा लेकर एक नए, समावेशी और न्यायसंगत मॉडल की आवश्यकता है, जो भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल हो और श्रमिक वर्ग के कल्याण को केंद्र में रखे।
