छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक धरोहर: प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों का अद्भुत स्थल – दीपाडीह

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले में कुसमी रोड पर स्थित दीपाडीह एक प्राचीन पुरातात्विक धरोहर है, जहां 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच निर्मित अद्भुत मंदिरों, मूर्तियों और पत्थर की प्रतिमाओं के अवशेष मिलते हैं। इतिहास प्रेमियों के लिए यह स्थान खजाने से कम नहीं, क्योंकि यह अभी भी अपनी मौलिक अवस्था में मौजूद है और अधिक पर्यटकों की भीड़ न होने के कारण पूरी तरह संरक्षित है।

दीपाडीह की ऐतिहासिक खोजें

इस स्थल की खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संपत्तियां उजागर हुईं, जिनमें समत सरना, उरांव टोला, रानी पोखरा, चामुंडा, और पंचायत मंदिर प्रमुख हैं। बोरजा टीला क्षेत्र में छह प्रमुख मंदिर और कई छोटे मंदिर पाए गए, जो मुख्य रूप से भगवान शिव, विष्णु, सूर्य और कई देवी-देवताओं को समर्पित हैं।

संत समत सरना की कथा

दीपाडीह का नाम राजा समत सरना के नाम पर रखा गया है, जो एक पौराणिक शासक थे। मान्यता है कि राजा समत अपने भाई तंगीनाथ से युद्ध में हार गए थे। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी रानियों ने एक कुएं में कूदकर प्राण त्याग दिए। इस ऐतिहासिक कथा को यहां की खुदाई में प्राप्त शिव प्रतिमा “पशुधर शिव चतुर्भुजी” मूर्ति से जोड़ा जाता है, जिसे यहां के स्थानीय आदिवासी लोग राजा समत का ही रूप मानते हैं।

अद्भुत मूर्तिकला और मंदिरों की विशेषता

दीपाडीह के मंदिरों में मौजूद शिल्पकला अद्वितीय और बेजोड़ है। उरांव टोला के शिव मंदिर में उत्कृष्ट मूर्तियां हैं, जिनमें उड़ते हुए मोर, हंस और नृत्यरत स्त्रियों की मूर्तियां शामिल हैं। इनके आभूषणों में पोंगल, कुंडल और तारकी जैसी नक्काशी दर्शाई गई है, जो आज भी सुरगुजा की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों से मेल खाती हैं।

विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां

दीपाडीह में प्राप्त प्रमुख मूर्तियां:

  • शिव प्रतिमाएं – पशुधर शिव, पार्श्वधार शिव, पंचमुखी शिवलिंग
  • गणेश जी – चतुर्भुजी और द्विभुजी रूपों में
  • भगवान विष्णु – विराट स्वरूप में
  • कार्तिकेय – मोर के साथ
  • भैरव – रुद्र रूप में
  • गंगा-यमुना – मंदिर के प्रवेश द्वार पर
  • महिषासुरमर्दिनी, चामुंडा, योगिनी, दुर्गा – विभिन्न रूपों में

इन मूर्तियों में कला की जीवंतता देखने को मिलती है, जहां भगवान शिव की जटाएं, पार्वती के गहने, वस्त्र, और हल्की मुस्कान तक को बारीकी से उकेरा गया है।

विष्णु मंदिर और जैन तीर्थंकर

शिव मंदिर से 1 किलोमीटर दूर बड़का देउर नामक स्थान पर खुदाई के दौरान 10वीं शताब्दी के दो विष्णु मंदिरों के अवशेष मिले हैं। यहां जैन तीर्थंकर श्री वृषभनाथ की मूर्ति भी मिली है, जो यह दर्शाती है कि इस क्षेत्र में कभी शैव और वैष्णव दोनों धर्मों का प्रभाव था।

दीपाडीह का सांस्कृतिक महत्व

यहां की मूर्तियों और शिल्पकला में न केवल धार्मिक भावना झलकती है, बल्कि सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाया गया है। एक मूर्ति में एक युवती शीशे में स्वयं को निहार रही है, तो दूसरी में एक वीर योद्धा अपनी प्रियतमा के पैर से कांटा निकाल रहा है। इन मूर्तियों में मानवीय भावनाओं और दैनिक जीवन के चित्रण का अद्भुत समावेश है।

निष्कर्ष

दीपाडीह छत्तीसगढ़ का एक अनमोल पुरातात्विक स्थल है, जहां मध्यकालीन कलचुरी कला और संस्कृति के समृद्ध अवशेष देखे जा सकते हैं। यहां की मूर्तिकला, मंदिरों की बनावट और ऐतिहासिक कथाएं इसे भारत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में स्थान दिलाती हैं। इस जगह को संरक्षित और विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि अधिक से अधिक लोग इस ऐतिहासिक धरोहर को जान और समझ सकें।

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