बिहार दिवस: इतिहास, चुनौतियां और नए विकास के संकल्प

पटना। बिहार—एक ऐसा नाम जो इतिहास, संस्कृति और संघर्ष की गूंज से भरा हुआ है। यह सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो समय-समय पर नए आयाम गढ़ती रही है। हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो राज्य के समृद्ध अतीत, सांस्कृतिक धरोहर और उसकी प्रगति को चिन्हित करता है। लेकिन यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक आत्ममंथन का अवसर भी है—जहां बिहार अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर अपने भविष्य की दिशा तय कर सकता है।

आर्थिक असंतुलन और चुनौतियां

हालांकि बिहार भारत की 9% आबादी का घर है, लेकिन यह राष्ट्रीय जीडीपी में मात्र 2.8% योगदान देता है। 1960-61 में बिहार की राष्ट्रीय जीडीपी में हिस्सेदारी 7.8% थी, जो 2000-01 तक घटकर 4.3-4.4% रह गई और वहीं स्थिर हो गई। प्रति व्यक्ति आय भी गिरकर 1960-61 में 70.3% से 2000-01 में मात्र 31% रह गई और अब यह राष्ट्रीय औसत का सिर्फ एक-तिहाई है।

  • निर्माण क्षेत्र में बिहार का योगदान केवल 0.77% है, जिससे निजी निवेश और रोजगार के अवसर सीमित हैं।
  • 34% लोग बहुआयामी गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, जबकि साक्षरता दर मात्र 62% है।
  • महिला श्रम भागीदारी 30.5% है, और बाल विवाह की घटनाएं आज भी व्यापक रूप से फैली हुई हैं।
  • 70% बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं।

बदलाव की नई किरणें

हालांकि, सरकार की हालिया योजनाएं आर्थिक और सामाजिक बदलाव के संकेत दे रही हैं।

  • सात निश्चय योजना के तहत ग्रामीण बुनियादी ढांचे और शिक्षा पर फोकस किया जा रहा है।
  • कोसी-मेची सिंचाई परियोजना से कृषि को मजबूती मिलेगी।
  • अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारे के तहत गया औद्योगिक केंद्र से निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा।
  • नालंदा और महाबोधि मंदिर के आसपास पर्यटन विकास से राजस्व वृद्धि और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
  • स्वास्थ्य सेवा में सुधार हुआ है—76% संस्थागत प्रसव और 79% कुशल जन्म सहायता के साथ मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य बेहतर हो रही है।

आगे की राह: तीन प्रमुख सुधार रणनीतियां

1. सांस्कृतिक पहचान को आर्थिक विकास से जोड़ना

  • पर्यटन को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना, ताकि महाबोधि, नालंदा, विक्रमशिला और अन्य ऐतिहासिक स्थलों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिले।
  • मधुबनी पेंटिंग, सुजनी कढ़ाई, टिकुली कला, मंजूषा कला, रेशम बुनाई और बांस कारीगरी को राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों तक पहुंचाना।
  • बिहारी व्यंजन और उत्सवों को व्यापार और निवेश के प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करना।

2. संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना

  • कृषि: किसान उत्पादक संगठन (FPOs) को बढ़ावा देना, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • उद्योग: संपत्ति अधिकारों को मजबूत करना, नियमों को सरल बनाना, निवेश के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग (21वें स्थान) में सुधार करना, और नवीकरणीय ऊर्जा व आईटी सेवाओं में निजी निवेश आकर्षित करना।
  • शिक्षा: डिजिटल साक्षरता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा के ऐतिहासिक केंद्रों का पुनरुद्धार और महिला शिक्षा को प्राथमिकता देना।

3. सामाजिक सशक्तिकरण

  • एनीमिया और बाल विवाह जैसी सामाजिक समस्याओं को सामुदायिक स्वास्थ्य अभियानों से समाप्त करना।
  • आंध्र प्रदेश के सामुदायिक पेरामेडिक मॉडल की तर्ज पर स्वास्थ्य सेवा में टेक्नोलॉजी का अधिक उपयोग करना।

बिहार दिवस का असली उद्देश्य

बिहार दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण और नवीनीकरण का अवसर होना चाहिए। यह वह दिन होना चाहिए जब बिहार अपनी ऐतिहासिक पहचान को आधुनिक संभावनाओं से जोड़कर एक नए भविष्य की ओर अग्रसर हो। बिहार की संस्कृति, प्रतिभा, और मेहनत को आर्थिक समृद्धि में बदलने का यही सही समय है।