छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार की महिलाएं पराली को धुएं से दौलत में बदलने की मिसाल पेश कर रही हैं। आमतौर पर धान की फसल के बाद बची पराली को जला दिया जाता है, जिससे प्रदूषण फैलता है। लेकिन यहां की महिलाएं इसे सजावटी और उपयोगी वस्तुओं में बदलकर आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की अनूठी कहानी लिख रही हैं।
पैरा आर्ट प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
बलौदा बाजार वन विभाग की पहल पर पैरा आर्ट प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें 45 महिलाओं को पराली से खूबसूरत टोकरी, फूलदान, वॉल डेकोर और टेबल मैट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। यह शिविर बारनवापारा अभ्यारण्य में सहेली सोशल वेलफेयर फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित हुआ। वनमंडलाधिकारी मयंक अग्रवाल और अभ्यारण्य अधीक्षक आनंद कुदरया ने इस पहल का नेतृत्व किया।
महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण का अवसर
पैरा आर्ट के माध्यम से महिलाएं कम लागत में उपयोगी वस्तुएं तैयार कर रही हैं। इन उत्पादों की बिक्री के लिए वन विभाग ने बारनवापारा अभ्यारण्य के भीतर स्थित सॉवेनियर शॉप्स में इन्हें उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। इससे पर्यटक इन अनोखे उत्पादों को खरीद सकेंगे, और आय का वितरण महिला स्व-सहायता समूहों में किया जाएगा।
पर्यावरण के लिए वरदान
यह पहल न केवल महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान कर रही है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की जगह इसे उपयोगी उत्पादों में बदलने की यह पहल पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है।
सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की नई पहचान
पैरा आर्ट से महिलाएं न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं, बल्कि आत्मविश्वास और सम्मान भी अर्जित कर रही हैं। यह पहल ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार और स्वावलंबन का नया जरिया बन रही है।