सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की एक युवा महिला सरपंच को हटाए जाने के आदेश को अनुचित और भेदभावपूर्ण बताते हुए उसे बहाल करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार को इस सरपंच को ₹1 लाख का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया, साथ ही कहा कि राज्य सरकार इस राशि को उन अधिकारियों से वसूल सकती है, जिन्होंने इस अन्यायपूर्ण निर्णय में भूमिका निभाई थी।
अधिकारियों के खिलाफ जांच का निर्देश
कोर्ट ने 27 वर्षीय सरपंच सोनम लकड़ा के प्रति अधिकारियों द्वारा किए गए अनुचित उत्पीड़न पर कड़ी नाराजगी जताई। सोनम को गांव में निर्माण कार्यों में देरी का आरोप लगाकर पद से हटा दिया गया था, लेकिन कोर्ट ने इन आरोपों को निराधार पाया। कोर्ट ने कहा कि निर्माण कार्यों में इंजीनियर, ठेकेदार और सामग्री की समय पर आपूर्ति का महत्व होता है, ऐसे में देरी का पूरा दोष सरपंच पर डालना अनुचित है।
सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
यह दूसरी बार है जब कोर्ट ने हाल के हफ्तों में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ हो रहे भेदभाव के मामलों में हस्तक्षेप किया है। पिछले महीने भी इसी पीठ ने महाराष्ट्र की एक महिला सरपंच को बहाल किया था। इस मामले में पीठ ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ गहरे पूर्वाग्रह और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण महिलाओं के प्रतिनिधित्व और समानता के प्रयासों को कमजोर करते हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार को चार सप्ताह में मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस मामले में शामिल अधिकारियों की जांच करें और मुआवजा राशि का भुगतान चार सप्ताह में सुनिश्चित करें। साथ ही, यह भी कहा कि राज्य इस राशि को जिम्मेदार अधिकारियों से वसूल सकता है। कोर्ट ने कहा कि महिला प्रतिनिधियों, खासकर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं का इस प्रकार से हटाया जाना उनके प्रयासों का अपमान है और यह प्रशासनिक तंत्र में मौजूद पूर्वाग्रह का प्रतीक है।
महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को लेकर कोर्ट का संकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दोहराया कि महिलाओं को बिना भय और भेदभाव के अपने पद पर सेवा करने का अवसर मिलना चाहिए। यह निर्णय न केवल सोनम लकड़ा के अधिकारों की बहाली करता है, बल्कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के प्रति सामाजिक और प्रशासनिक मानसिकता को बदलने का संकेत भी देता है।