दार्जिलिंग, असम, ऊटी के बाद अब छत्तीसगढ़ ने भी बेहतर क्वालिटी चाय उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा है। यह पहल छत्तीसगढ़ के जशपुर क्षेत्र से प्रारंभ हुई है। यहां के बगानों की चाय जल्द ही देश में अपनी गुणवत्ता व स्वाद का परचम लहराएगी।
रायपुर (छत्तीसगढ़)। जशपुर की पहचान यहां की विशिष्ट संस्कृति, समकालीन राजाओं एवं प्राकृतिक सुंदरता से रही है, अब जशपुर नगरी की पहचान यहां के चाय बागान से भी होगी। पर्वतीय एवं ठंडे इलाकों में ही पनपने वाले चाय के पौधों की जशपुर में खेती कर बागान के रूप में विकसित करने और चायपत्ती बनाने की पहल से छत्तीसगढ़ की शान बढऩे जा रही है। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड में भी न तो चाय का उत्पादन होता है और न ही वहां बागान है। इस लिहाज से यहां का चाय बागान न सिर्फ छत्तीसगढ़वासियों को, अन्य राज्यों के पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा।ं जशपुर के चाय बागान में जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। जैविक खाद से तैयार पौधे और चाय न सिर्फ चाय पीने वालों के सेहत को तंदुरूस्त रखेंगे, उन्हें चाय की चुस्की के साथ ताजगी और स्वाद का भी आनंद देंगे। सरकारी स्तर पर जशपुर जिले के बालाछापर में 45 लाख रूपये की लागत से चाय प्रसंस्करण केंद्र स्थापित कर उत्पादन प्रारंभ कर दिया गया है जहा ब्लैक एवं ग्रीन टी तैयार किया जा रहा है।
जशपुर के बालाछापर में वनविभाग के पर्यावरण रोपणी परिसर में चाय प्रसंस्करण यूनिट की 45 लाख रु. की लागत से स्थापना की गई है। यूनिट में 1200 किलोग्राम हरे पत्ते की प्रतिदिन प्रोसेसिंग क्षमता है। इसके माध्यम से 250 किलोग्राम प्रतिदिन चाय का उत्पादन किया जा सकता है। यहां चार वेरायटी 520, 463, 494, 491 में से 520 एवं 463 का उत्पादन बेहतर माना गया है। इसके अलावा जिले के केसरा मनोरा में 30 एकड़ तथा गुटरी, लोखण्डी में 20 एकड़ में चाय बागान लगाए जाने की तैयारी विभाग ने की है। फिलहाल चाय के 3 लाख पौधे बालाछापर नर्सरी में तैयार हैं। जशपुर जिले के सोगड़ा आश्रम परिसर पर भी लगभग 8 एकड़ में चाय का बागान है। चाय प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना के साथ ही मशीन संचालन के लिए दार्जिलिंग क्षेत्र के बीरबहादुर सुब्बा को जिम्मेदारी सौपी गई है।